Table of Contents
- ऐसे पता चली बीमारी
- डॉक्टर ने शुरू किया प्रयास
- कुछ माह में मिले परिणाम
- 25 फरवरी को पहला इंफ्यूजन
- अस्पताल से घर वापसी
- शोध पूरा होने तक विशेष डाइट और इलाज
- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी बीमारियों का इलाज संभव
Genetic Treatment: केजे मुलडून इस 1 जून को 10 माह का हो जाएगा. ये कहना बहुत आसान लग रहा है. लेकिन केजे के इस 10 माह के जीवन में जो उतार-चढ़ाव आए हैं वो एक चिकित्सीय चमत्कार से कम नहीं है. क्योंकि केजे मुलडून एक ऐसी दुर्लभ बीमारी सीपीएस1 (CPS1) से पीड़ित पैदा हुआ था, जिससे एक सप्ताह के अंदर ही उसकी मृत्यु होना निश्चित थी. लेकिन समय पर जांच होने जाने से उसकी आनुवांशिक बीमारी का पता चल गया. इसके बाद उसे बचाने की कवायद शुरू की गई.
ऐसे पता चली बीमारी
काइल और निकोल मुल्डून के घर जब केजे ने सामान्य बच्चों की तरह ही जन्म लिया था. लेकिन जब वह एक सप्ताह का था तो डॉक्टरों ने पाया कि उसका हाथ उठने के बाद अकड़ जाता है और उसमें कंपन होने लगता है. डॉक्टरों ने पहले पहले अनुमान लगाया गया कि उसे मेनिन्जाइटिस या सेप्सिस हो सकता है. डॉक्टरों ने कई सारी जांचे कराई, जिसमें जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाना भी था. रिपोर्ट आने पर उन्हें पता लगा कि केजे मुलडून को सीपीएस1 (CPS1) नाम की दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी थी. इस बीमारी के कारण से शरीर से अमोनिया साफ करने की क्षमता खत्म हो जाती है. इसके कारण उसे गंभीर मानसिक और शारीरिक विकास सबंधी विकार हो सकते हैं. यहां तक कि उसका लिवर भी प्रत्यारोपित करना पड़ सकता था. अमोनिया रक्त से मस्तिष्क में पहुंचने के कारण ऐसे बच्चे पहले सप्ताह में ही मर जाते हैं.
डॉक्टर ने शुरू किया प्रयास
8 अगस्त को यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया में जीन एडिटिंग शोधकर्ता डॉ. किरण मुसुनुरु को फिलाडेल्फिया के चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल में डॉ. रोबेका एहरेंस निकलास से एक ईमेल मिला. इसमें बताया गया था कि केजे को सीपीएस1 (CPS1) नाम की बीमारी है. क्या ऐसे बच्चे को बचाया जा सकता है? लेकिन बच्चे के लिए जीन एडिटिंग प्रणाली बनाना और उसका परीक्षण करना बहुत आसान नहीं था. इसमें कई साल का समय लग सकता था. इसके बावजूद डॉ. मुसुनुरु ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय बर्कले में फ्योडोर उर्नोव के साथ काम करना शुरू किया. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि डीएनए में कहीं और कोई अप्रत्याशित और हानिकारक जीन एडिटिंग न हो. इसके अलावा इस कार्य में कई शोध कंपनियों ने हिस्सा लिया. एफडीए ने भी जीन एडिटिंग के लिए जरूरी कानूनी अनुमोदन को आसान बनाते हुए जल्दी अनुमति दे दी. इसके बाद दर्जनों शोधकर्ता इस कार्य में जुट गए.
कुछ माह में मिले परिणाम
शोधकर्ताओं की दिन रात की मेहनत के बाद केजे मुलडून की खराब जीन की एडिटिंग के लिए एक इलाज की पद्धति खोज ली गई. ये परिणाम अप्रत्याशित थे. ऐसा शोध जिसके लिए एक दशक से अधिक का समय लग सकता था, वो कुछ माह में ही पूरा हो गया. जीन एडिटिंग की पद्धति को नाम दिया गया CRISPR. इसके बाद एफडीए ने शोध को आगे इस्तेमाल की अनुमति भी दे दी. पूरी तरह से संतुष्ट होने के बाद फिलाडेल्फिया के चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल में डॉ. रोबेका एहरेंस निकलास ने केजे के माता-पिता काइल व निकोल को जानकारी दी कि एक ऐसी तकनीक विकसित हो गई जो कि उनके बेटे की जीन एडिटिंग कर उसे नया जीवन दे सकती है. ये जानते हुए भी काइल व निकोल ने केजे पर जेनेटिक म्यूटेशन को ठी करने वाली तकनीक का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी, जो पहली बार किसी पर आजमायी जाने वाली थी.
25 फरवरी को पहला इंफ्यूजन
केजे मुलडून मात्र छह महीने का था, तब उसे CRISPR का पहला इंफ्यूजन दिया गया. ये दिन था 25 फरवरी 2025 का. डॉक्टरों ने इंफ्यूजन के बाद देखा कि दो सप्ताह के अंदर केजे एक स्वस्थ बच्चे की तरह ही प्रोटीन को पचाने में सक्षम हो गया है. लेकिन उसके रक्त से अमोनिया हटाने के लिए अभी भी दवा की जरूरत थी. इससे डॉक्टरों को पता चला कि जीन एडिटिंग पूरी तरह से सफल नहीं हुई थी और दवा से हर प्रभावित कोशिका में डीएनए ठीक नहीं हुआ था. इसलिए केजे को 22 दिन बाद दवा की दूसरी खुराक दी गई. इस बार दवा की मात्रा आधी थी. देखभाल के दौरान केजे को कुछ वायरल बीमारियों ने चपेट में लिया. जिससे रक्त में अमोनिया की मात्रा बढ़ सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
अस्पताल से घर वापसी
डॉक्टरों ने मई के पहले सप्ताह में केजे को बहुत कम मात्रा में दवा की तीसरी खुराक दी. इसके भी बेहतर परिणाम मिले. इसके बाद केजे को अस्पताल से वापस घर भेजने का फैसला किया गया. हालांकि केजे का वजन उसकी उम्र के हिसाब से आधा ही था. लेकिन नौ महीने बाद वो बिना किसी सहायता के बैठने में सक्षम हो गया और फल खाना शुरू कर दिया है.
शोध पूरा होने तक विशेष डाइट और इलाज
यहां यह जानना भी बहुत जरूरी है कि फिलेडेल्फिया चिल्ड्रेंस हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने शोध पूरा होने तक केजे को ऐसे आहार पर रखा, जिसमें प्रोटीन की मात्रा बहुत कम थी. उसे प्रोटीन इतना ही दिया गया कि उसका शारीरिक विकास न रुके. इसी के साथ उसे ऐसी दवा भी दी गई, जो शरीर से अमोनिया को हटाने में मदद करती थी. इससे केजे बहुत फायदा हुआ. सफल इलाज के बाद साढ़े नौ माह का केजे किसी भी उम्र का पहला मरीज बन गया है, जिसे कस्टम जीन एडिटिंग से नया जीवन मिला है. केजे को एक ऐसा इन्फ्यूजन दिया गया. जो सिर्फ उसके लिए ही बनाया गया था.
मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी बीमारियों का इलाज संभव
केजे के इलाज के लिए हुए शोध ने दुर्लभ आनुवांशिक बीमारियों के इलाज को नयी दिशा दी है. केजे का इलाज करने वाले डॉक्टरों मानना है कि ये शोध भले ही केजे के लिए था, लेकिन इससे अन्य बीमारियों के इलाज का रास्ता खुल गया है. इस तकनीक में दवा को फैटी लिपिड मॉलिक्यूल में संरक्षित किया जाता है. जिससे उसे रक्त में जाने पर क्षरण होने से बचाता है. ये लिपिड कोशिकाओं को ऐसे एंजाइम बनाने के लिए निर्देशित करते हैं जो जीन एडिटिंग में सक्षम होते हैं. CRISPR उसे सटीक डीएनए तक पहुंचाने में मदद करते हैं, जो कि जेनेटिक म्यूटेशन का शिकार है. केजे के लिए ऐसा CRISPR तैयार किया गया था, जो उसके जीन को ही एडिट कर सके. इस तकनीक से अब अन्य आनुवांशिक बीमारियों मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, सिकल सेल डिसीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हंटिंगटन डिसीज इलाज भी संभव हो सकेगा.
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