बिहारियों को क्यों काटता है आईएएस बनने का कीड़ा? इतिहास से जानिए वजह

IAS In Bihar : बिहार एक ऐसा राज्य है, जहां के लोग शिक्षा पर अत्यधिक निवेश करते हैं और उनका एक सपना होता है कि उनका बेटा-बेटी बड़ा अधिकारी बने. यह सोच यहां के निम्न वर्ग के लोगों की है, तो उच्च वर्ग भी कुछ इसी तरह की सोच रखता है. बच्चे के जन्म के साथ ही उसकी करियर की प्लानिंग होने लगती है. पहले लोग अपने बच्चे को आईएएस-आईपीएस बनाना चाहते थे, आज उसका स्वरूप बदला है और लोग आईआईटी और अन्य तकनीकी चीजों की ओर भी जा रहे हैं, लेकिन यह बात बिलकुल सच है कि बिहारी हमेशा अपने करियर को लेकर बहुत जागरूक रहते हैं और उनका शिक्षा के प्रति झुकाव बहुत ज्यादा होता है.

By Rajneesh Anand | July 8, 2025 4:36 PM
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IAS In Bihar : बिहार राज्य में नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय हुए, जहां देश-विदेश से आकर लोग शिक्षा ग्रहण करते थे. बिहारियों के डीएनए में ही शिक्षा को लेकर जागरूकता बहुत ज्यादा रही है. यहां के लोग तर्क के आधार पर ही चीजों को स्वीकारने की परंपरा के वाहक हैं, जो शिक्षा के बिना असंभव है. आचार्य चाणक्य जिन्होंने राजनीतिशास्त्र पर महान किताब लिखी, वे इसी बिहार के रहने वाले थे. इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि बिहार में शिक्षा का महत्व हजारों साल से रहा है.

अंग्रेजों से पहले बिहार में शिक्षा की स्थिति

बिहार के इतिहास पर अगर नजर डालें तो हम पाएंगे कि यहां शिक्षा हर वर्ग को लुभाती थी. यह अलग बात है कि यहां की जातीय व्यवस्था में रहने वाले लोग अपने पेशे को लेकर इतने जागरूक थे कि उन्होंने अपने पेशे में ही बेहतरीन काम किया, लेकिन यह कहना गलत होगा कि यहां यहां शिक्षा सिर्फ सवर्णों में थी और बाकी जातियां शिक्षा से अनभिज्ञ थी. The Beautiful Tree: Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century के लेखक धर्मपाल ने अपनी किताब में लिखा है कि विलियम एडम के 1835–38 के सर्वेक्षण के अनुसार, बंगाल और बिहार की लगभग 1,50,748 गांवों में से लगभग 1,00,000 गांवों में एक‑एक स्कूल था. यानी लगभग हर गांव में प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध थी. इन स्कूलों में ब्राह्मण और कायस्थ जाति के अलावा निम्न जातियों (डोम व चांडाल ) भी पढ़ते थे. बिहार से जुड़े प्रमुख आंकड़ों के मुताबिक पटना और बक्सर में औसतन 100–150 विद्यालय थे. इन विद्यालयों में 30% विद्यार्थी ब्राह्मण, कायस्थ वर्ग से थे. 40% से अधिक विद्यार्थी कोइरी, कुर्मी, तेली आदि जातियों से थे. 15–20% विद्यार्थी शूद्र और तथाकथित ‘निचली’ जातियों से थे, जैसे डोम, चांडाल आदि. कुछ स्थानों पर मुस्लिम बच्चों की उपस्थिति भी स्कूलों में बताई जाती है. यह विद्यालय पारंपरिक तरीके के थे और यहां शिक्षा स्थानीय भाषाओं में दी जाती थी. अंग्रेजों के आने के बाद माॅर्डन शिक्षा का प्रसार यहां बढ़ा और पारंपरिक विद्यालय नष्ट हुए.

बिहारियों का झुकाव आईएएस बनने की ओर क्यों हुआ

बिहारियों का झुकाव सरकारी नौकरी और आईएएस जैसे पदों की ओर होने की बड़ी वजह यह है कि यहां एकेडेमिक फील्ड ही रोजगार का सबसे बड़ा सोर्स था. हालांकि आज के परिदृश्य में परिस्थितियां बदली हैं, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि शिक्षा और सरकारी नौकरी बिहारी की पहली पसंद रहा है. इस संबंध में बात करते हुए रिटायर्ड आईएएस अधिकारी विजय प्रकाश बताते हैं कि बिहार में एग्रीकल्चर तो बहुत अच्छा था, लेकिन हमारे यहां बिजनेस का कल्चर नहीं है. हमारे यहां इंडस्ट्री भी बहुत कम है, जिसकी वजह से आम बिहारी शिक्षा के जरिए ही नौकरी पाने की लालसा रखता है. साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि बिहार में शिक्षा का कल्चर रहा है. हमारे यहां कई शिक्षाविद्‌, फिलाॅसफर हुए जिन्होंने शिक्षा का प्रसार किया. बिहार के लोगों का एकेडेमिक फील्ड से जुड़ाव होने का एक और वजह यह है कि यहां के लोग अगर समुद्री रास्ते से बाहर जाकर कोई व्यवसाय करते थे, तो उन्हें एक तरह से जाति से निकाल दिया जाता था, जिसकी वजह से यहां के लोग बाहर जाना नहीं चाहते थे. इस वजह से उनके पास रोजगार का एकमात्र साधन शिक्षा ही बचता था.

बिहार में तकनीकी शिक्षा का अभाव

बिहार के इतिहास पर नजर डालें तो हम पाएंगे कि तकनीकी क्षेत्र में बिहार पिछड़ा था. यहां इतने इंजीनियरिंग काॅलेज ही नहीं थे कि बच्चे उनकी ओर रुख करते. यहां तक की आईटीआई की शिक्षा भी बमुश्किल मिलती थी. इन हालात में उनके पास जेनरल एजुकेशन ही रोजगार का एकमात्र जरिया था. विजय प्रकाश बताते हैं कि जेनरल एजुकेशन के जरिए आईएएस, आईपीएस और बीडीओ-सीओ बनना आसान होता है, इसलिए बिहारियों का झुकाव इस ओर हुआ.

गांवों -टोलों के नाम गणित आधारित रखे गए

बिहार में शिक्षा का महत्व कितना अधिक था इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यहां गांवों और टोलों को गणितीय नाम दिया गया. विजय प्रकाश बताते हैं कि कई गांवों के नाम गणित आधारित हैं, जैसे दानापुर यानी प्वाइंट सेंटर, सगुना मोड़ यानी सौ गुना मोड़, करोड़ी चक, खगौल इत्यादि. उत्तर बिहार में तो गांवों के नाम वेदों पर आधारित हैं, जैसे रीगा, जो ऋगवेद से निकला है और भी कई ऐसे नाम हैं.

आईएएस फैक्ट्री माने वाले बनगांव में लोगों का फोकस शिक्षा पर

बिहार के सहरसा जिले का बनगांव जिसे आईएएस फैक्ट्री कहा जाता है, वहां शिक्षा का प्रसार बहुत ज्यादा है. आधुनिक समय की बात करें , तो यहां के बच्चे अब सिर्फ आईएएस और आईपीएस ही नहीं बनना चाहते वे अन्य क्षेत्रों में भी भाग्य आजमा रहे हैं. इस बारे में बात करते हुए प्रमिल मिश्र(उपाध्यक्ष उग्रतारा न्यास परिषद) ने बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि गांव में शिक्षा के प्रति लोगों का झुकाव बहुत ज्यादा है, इसी वजह से यहां बड़े अधिकारी बनते हैं. विगत कुछ वर्षों में बच्चे डाॅक्टर -इंजीनियर और अन्य फील्ड में जाकर भी नाम कमा रहे हैं. सबसे बड़ी यह है कि बनगांव के लोगों में शिक्षा को लेकर एक अलग जुड़ाव है, वे जानते हैं कि शिक्षा हमारी सबसे बड़ी पूंजी है, इसलिए वे विभिन्न क्षेत्रों में नाम कमा रहे हैं.

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