India-Canada Conflict : वर्षों से कनाडा की सरकारों ने, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल की क्यों न रही हों, भारतीय सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज करते हुए खालिस्तान संबंधित गतिविधियों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया है. इसे कुछ उदाहरणों से समझा जा सकता है. वर्ष 1980 के दशक में, जब भारत में खालिस्तानी उग्रवाद चरम पर था, तब कनाडाई सरकार ने कनाडा के भीतर बढ़ती खालिस्तानी अलगाववादी गतिविधियों की उपेक्षा की. वर्ष 1982 में कुख्यात खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण के लिए भारत के बार-बार अनुरोध के बावजूद पियरे ट्रूडो की सरकार ने परमार के प्रत्यर्पण को खारिज कर दिया. इसके अतिरिक्त 23 जून, 1985 को एयर इंडिया के विमान कनिष्क को बम से उड़ाने के आरोपी सिख अलगाववादी समूह बब्बर खालसा के उग्रवादियों को कनाडा से देश लाने में भी भारत विफल रहा, क्योंकि कनाडा सरकार इस मामले को लेकर उदासीन बनी रही. इतना नहीं नहीं, बाद के सरकारों ने भी खालिस्तान के मुद्दे पर अलगाववादियों को समर्थन व संरक्षण देना जारी रखा. वर्ष 2015 में जस्टिन ट्रूडो की सरकार बनने के बाद से वोट बैंक के कारण राजनीतिक दलों ने सिख तुष्टिकरण की नीति को अपनाया. इसी वर्ष 19 जून को कनाडा की संसद ने नामित खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की पहली बरसी पर एक मिनट का मौन रखा. यहां राजनीतिक दलों के बीच स्पष्ट सहमति दिखी.
संबंधित खबर
और खबरें