Kargil Vijay Diwas : वो चिट्ठी भेजे थे- मैं तुमसे मिलने आऊंगा, पर आई तिरंगे में लिपटी लाश; कारगिल शहीद बिरसा उरांव की पत्नी की आपबीती
Kargil Vijay Diwas : शहीद बिरसा उरांव 1998 के बाद घर नहीं आए थे, पूरे एक साल का समय बीत चुका था. पत्नी उन्हें एक बार देखने की बात बार-बार चिट्ठी में लिखती थीं. शहीद के पांच साल की बेटी और तीन साल के बेटे भी पापा से मिलना चाहते थे. लेकिन 1999 में…
By Rajneesh Anand | July 25, 2024 2:12 PM
Kargil Vijay Diwas : ये बात है 1999 की, जब भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ था. इस युद्ध में भारत के 527 वीर सैनिक शहीद हुए थे. युद्ध से दो महीने पहले झारखंड के गुमला जिले के सिसई प्रखंड के जतराटोली के रहने वाले बिहार रेजिमेंट के हवलदार बिरसा उरांव ने अपनी पत्नी मीला उरांव को पत्र लिखा था कि वे अगस्त या फिर सितंबर में घर आएंगे. यह चिट्ठी मीला उरांव को जून महीने में मिली थी. बिरसा उरांव 1998 के बाद घर नहीं आए थे, पूरे एक साल का समय बीत चुका था. पत्नी की आंखें भी पति की सूरत देखने के लिए तरस रही थी. वो ये चाहती थी कि पति जितनी जल्दी हो सके, उनसे मिलने घर आए. एक पांच-छह साल की बेटी और तीन साल के बेटे को भी अपने पिता का इंतजार था.
कारगिल युद्ध में भाग लेने की जानकारी परिवार को नहीं थी
एक पत्नी और दो बच्चों का यह इंतजार मिलन की खुशी में बदलने की बजाय कभी ना खत्म होने वाले इंतजार में बदल गया, जब हवलदार बिरसा उरांव खुद नहीं आए और यह सूचना आई कि वे कारगिल युद्ध में शहीद हो गए हैं और उनकी बाॅडी घर लाई जा रही है. प्रभात खबर से बात करते हुए उनकी पत्नी मीला उरांव ने बताया कि उस समय वे गांव में रहती थीं, फोन की भी कोई सुविधा नहीं थी. किसी भी तरह की सूचना के लिए पत्र या फिर टेलीग्राम पर ही निर्भर रहना पड़ता था. जिस वक्त वे कारगिल युद्ध के लिए गए हमें कोई जानकारी नहीं थी.
अचानक एक दिन खबर आई कि सिसई में उनका पार्थिव शरीर लाया जा रहा है. जानकारी मिलने के बाद मैं सदमे में थी, समझ ही नहीं आया था कि क्या करूं, उन्होंने कहा था कि वो खुद आएंगे, लेकिन वो नहीं आए, आई तो तिरंगे में लिपटी उनकी लाश. आज जब इतने साल बीत गए और उनकी शहादत की बात होती है, तो गर्व महसूस होता है. उन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगाया.
बिहार रेजिमेंट में हवलदार थे कारगिल युद्ध के शहीद बिरसा उरांव
शहीद बिरसा उरांव हवलदार के पद पर बिहार रेजिमेंट में सेवा दे रहे थे. पहले वे जवान थे फिर लांस नायक बने और फिर हलवदार. शहीद को छह पुरस्कार मिला है. जिसमें सामान्य सेवा मेडल नागालैंड, नाइन इयर लौंग सिर्वस मेडल भारत सरकार, सैनिक सुरक्षा मेडल, ओवरसीज मेडल संयुक्त राष्ट्र संघ, प्रथम बिहार रेजिमेंट की 50वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल व विशिष्ट सेवा मेडल मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा किया गया.
शहीद बिरसा उरांव के मन में देशप्रेम इस कदर भरा था कि वे सिर्फ कारगिल युद्ध में ही नहीं लड़े बल्कि उन्होंने सेना के विभिन्न ऑपरेशन में अपनी वीरता दिखाई थी. ऑपरेशन ओचार्ड नागालैड, ऑपरेशन रक्षक पंजाब, यूएनओ सोमालिया टू दक्षिण अफ्रिका, ऑपरेशन राइनो असम जैसे ऑपरेशन में वे शामिल थे. उनके जीवन से प्रेरित होकर ही मेरी बेटी पूजा विभूति उरांव पुलिस सेवा में गई है और देश की सेवा कर रही है. शहीद के दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी. बेटा भी पढ़ाई पूरी कर चुका है. (इनपुट दुर्जय पासवान)