Table of Contents
- कौन थे ललित नारायण मिश्र जिनकी 1975 में हुई थी हत्या
- हत्या की वजह विवादों में रही
- ललित नारायण मिश्र के परिजन मानते हैं राजनीतिक साजिश
- हत्या की आशंका से घिरे थे ललित नारायण मिश्र
- ललित नारायण मिश्र होते, तो शायद देश में नहीं लगती इमरजेंसी
Lalit Narayan Mishra Assassination : देश के राजनीतिक इतिहास में ललित नारायण मिश्र की हत्या एक ऐसी पहेली है, जो अबतक अनसुलझी मानी जाती है. ललित नारायण मिश्र कांग्रेस के कद्दावर नेता थे और जिस वक्त उनकी उनकी हत्या हुई वे देश से रेलमंत्री थे. उनकी हत्या में शामिल लोगों को 2014 में सजा हुई, लेकिन इस हत्या के पीछे वजह क्या थी और क्यों जांच में इतना समय लगा इसपर आज भी विवाद है.
कौन थे ललित नारायण मिश्र जिनकी 1975 में हुई थी हत्या
ललित नारायण मिश्र कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. वे पहली, दूसरी और 5वीं लोकसभा के सदस्य रहे थे. वे 1964-1966 और 1966-1972 तक राज्यसभा के सदस्य रहे थे. वे 1970 से 1973 तक विदेश व्यापार मंत्री रहे थे. उसके बाद 5 फरवरी 1973 को उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेल मंत्री बनाया था. इसके अलावा भी वे विभिन्न पदों पर रहे, जिसमें रक्षा उत्पादन राज्य मंत्री, गृह मामलों के उपमंत्री और उपवित्तमंत्री का पद शामिल है. 2 जनवरी 1975 को ललित नारायण मिश्र समस्तीपुर-दरभंगा ब्रॉड गेज रेलवे लाइन को चालू करने की घोषणा के लिए समस्तीपुर आए हुए थे. कार्यक्रम के दौरान ही किसी ने मंच पर बम फेंका था, जिसमें ललित नारायण मिश्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे. उन्हें दानापुर के रेलवे अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 3 जनवरी को उनकी मौत हो गई.
हत्या की वजह विवादों में रही
ललित नारायण मिश्र की हत्या क्यों की गई, इसे लेकर बहुत विवाद है. आशंका जताई जाती है कि उनकी हत्या राजनीतिक साजिश का परिणाम थी, लेकिन आधिकारिक रूप से यह माना जाता है कि ललित नारायण मिश्र पर आनंदमार्गियों ने हमला हुआ था. लेकिन उस दौर के कई पत्रकार और उनके परिवार वाले भी यह मानते हैं कि ललित नारायण मिश्र की हत्या राजनीतिक साजिश थी. वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि ललित नारायण मिश्र की हत्या एक राजनीतिक साजिश थी और इसमें कोई राय नहीं है. जिस वक्त ललित नारायण मिश्र की हत्या हुई उस वक्त समस्तीपुर के एसपी डीपी ओझा थे, जो एक कर्तव्यनिष्ठ अफसर थे. हत्या के बाद उन्होंने तत्काल जांच शुरू करवा दी और दो आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनके नाम अरुण कुमार मिश्रा और अरुण कुमार ठाकुर थे. इन दोनों ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने जिस तरह के बयान दिए थे, उससे यह स्पष्ट था कि यह हत्या एक राजनीतिक साजिश थी.
ललित नारायण मिश्र के परिजन मानते हैं राजनीतिक साजिश
ललित नारायण मिश्र हत्याकांड में निचली अदालत ने पांच लोगों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई. इन दोषियों में से एक की मौत हो चुकी थी, इसलिए चार लोग अभी जेल में है. लेकिन ललित बाबू के परिजन इसे राजनीतिक साजिश मानते हैं. उनके पुत्र विजय कुमार मिश्र ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि मैंने कोर्ट में भी यह बात कही थी और अब भी यह कह रहा हूं कि पिताजी की हत्या में आनंदमार्गी शामिल नहीं थे, यह एक राजनीतिक साजिश है. जिस वक्त हत्या हुई थी, लोग आश्चर्यचकित थे कि यह क्या हो गया है.
हत्या की आशंका से घिरे थे ललित नारायण मिश्र
कूमी कपूर की किताब ‘The Emergency: A Personal History’ में यह लिखा गया है कि हत्या से पहले समस्तीपुर जाने के वक्त ललित नारायण मिश्र ने एक वरिष्ठ पत्रकार को बताया था कि उन्हें हत्या का भय है. इस बारे में उनके पोते ऋषि मिश्र कहते हैं कि दादी जी छह माह से इस बात का शक था उनकी हत्या हो सकती है, इसलिए घर पर जब कोई चिट्ठी या पार्सल आता तो वे नहीं खोलते थे और कहते थे पहले इसकी जांच करा लो. इतना ही नहीं 1974 की दुर्गापूजा के लिए जब वे गांव गए थे तो अपने भाइयों से यह कहा था कि अगर मुझे कुछ हो जाए, तो मेरा अंतिम संस्कार गांव में ही करना. मेरी दादी और मेरे पिताजी दोनों ही यह मानते हैं कि मेरे दादाजी ललित नारायण मिश्र की हत्या एक राजनीतिक साजिश थी. इसके लिए जिम्मेदार कौन थे,यह जांच का विषय है और केस दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहा है, उम्मीद है सबकुछ साफ हो जाएगा.
ललित नारायण मिश्र होते, तो शायद देश में नहीं लगती इमरजेंसी
ललित नारायण मिश्र की हत्या के लगभग छह माह बाद देश में इमरजेंसी लागू हो गई थी. इस बारे में उनके पोते ऋषि मिश्र बताते हैं कि शायद दादा जी जीवित होते तो देश को इमरजेंसी ना देखना पड़ता. उनकी जेपी के साथ 6 जनवरी को मीटिंग फिक्स थी, संभवत: इस मीटिंग में कुछ बड़ा होता, लेकिन उससे पहले ही उनकी हत्या हो गई.
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