Mother’s Day : व्यक्तित्व के निर्माण में मातृत्व की अहम भूमिका

Mother's Day : अल्पावस्था में बालक सबसे अधिक मां के निकट संपर्क में रहता है इसलिए स्वभाविक रूप से मातृत्व का एक व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है. ब्रह्मा, विष्णु और महेश बनकर एक नारी अपनी संतान के व्यक्तित्व निर्माण में सक्षम है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 10, 2025 10:15 PM
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-प्रफुल्ल चंद्र पांडेय-

Mother’s Day : भारत महान माताओं का देश रहा रहा है जिनकी महिमा एवं मातृत्व के अमृत ने मनुष्य की कौन कहे, स्वयं देवताओं तक को नतमस्तक होने पर विवश कर दिया है. सनातन संस्कृति में अनेक ऐसे उदाहरण उपलब्ध हैं जहां भारतीय स्त्रियों की मातृत्व के आभा ने विश्व का मार्गदर्शन किया है.
महर्षि वाल्मिक ने कहा- ‘नास्ति मातृ समो गुरु’ और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के द्वारा ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ की उद्‌घोषणा के पीछे माता और मातृत्व की महिमा की स्वीकृति ही है.

मातृत्व नारी की महिमा

वस्तुतः मातृत्व नारी की महिमा भी है और नारी जीवन का लक्ष्य भी है. नारी का जन्म मातृत्व द्वारा
ही धन्य होता है. माता का पद प्राप्त करते ही विश्व की समस्त मंगलकामना, कोमलता और करूणा नारी के जीवन में स्वत: समाहित हो जाती हैं. मातृत्व की मूल वृत्ति नारी को रहस्यमयी भी बना देती है. मातृत्व सृष्टि के परंपरा प्रवाह को बनाए रखने की साधना है और इसलिए यह वंदनीय भी है.

अल्पावस्था में बालक सबसे अधिक मां के निकट संपर्क में रहता है इसलिए स्वभाविक रूप से मातृत्व का एक व्यक्ति के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है. ब्रह्मा, विष्णु और महेश बनकर एक नारी अपनी संतान के व्यक्तित्व निर्माण में सक्षम है. माता चाहे भिखारिन हो, धनवान हो, विद्वान की पत्नी हो या फिर वनों में रहने वाली हिंसक शेरनी ही क्यों ना हो, प्रकृति ने समस्त योनियों में जन्म देने वाली नारी शक्ति को सम्मान रूप से ममतामयी और संवेदनशील बनाया है. माता अपनी संतान के ऊपर आया संकट देख अपना सबकुछ आहुति देकर भी संतान की रक्षा करती है.

मां का प्रेम नि: स्वार्थ

संतान के प्रति मां का प्रेम सर्वथा नि: स्वार्थ होता है. वह केवल यह चाहती है कि उसकी संतान सुखी रहे. इसी में एक मां को परम संतोष का अनुभव होता है. यदि प्रेम के पारमार्थिक स्वरूप का दर्शन करना है तो मां की ओर देखना चाहिए. परमात्मा के सच्चे स्वरूप को समझना है, तो मां की ममतामयी गोद को याद करना चाहिए. शास्त्र कहते हैं कि माता कुमाता नहीं हो सकती है, हां पुत्र जरूर कुपुत्र हो सकता है.

मातृत्व के संदर्भ में यह याद रखना चाहिए कि मातृत्व पद नारी की दुर्बलता भी है. इसको पाने के लिए वह सबकुछ करने को तैयार हो जाती है.आजकल यह शंका भी जताई जा रही है कि पश्चिमी जगत के प्रभाव में भारत में मातृत्व संकट में है. लेकिन यह शंका निराधार है. भारत में अनेक ऐसी माताओं ने जन्म लिया है, जिसने अपने पराक्रम से मातृत्व को गौरवान्वित किया है. हां यह बात अलग है कि मातृत्व के समक्ष आज के समय में काफी चुनौतियां हैं, बावजूद इसके मां और मातृत्व पूजनीय हैं.

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