Table of Contents
- नीरजा भनोट जिस विमान की एयर होस्टेस थीं उसके साथ क्या हुआ था?
- नीरजा की समझदारी से आतंकवादियों की योजना हुई विफल
- नीरजा ने बचाई 360 लोगों की जिंदगी और खुद हुई कुर्बान
- नीरजा बनीं सबके लिए प्रेरणा
Neerja Bhanot Story Of Bravery : नीरजा भनोट एक भारतीय एयर होस्टेस थीं, जिन्होंने 5 सितंबर 1986 को Pan Am Flight 73 के अपहरण के दौरान अपनी जान की परवाह न करते हुए 360 यात्रियों की जान बचाई थी. नीरजा भनोट अगर चाहती तो सबसे पहले अपनी जान बचातीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और यात्रियों को पहले बाहर निकाला. उनके इस प्रयास से यात्रियों की जान तो बच गई, लेकिन नीरजा भनोट नहीं बचीं, उनकी मौत उनके जन्म दिन के महज दो दिन पहले हो गई थी. जिस वक्त उनकी मौत हुई वो महज 22 वर्ष की थीं.
नीरजा भनोट जिस विमान की एयर होस्टेस थीं उसके साथ क्या हुआ था?
नीरजा भनोट एक फ्लाइट पर्सर थी यानी वह क्रू मेंबर्स में सबसे सीनियर थी और वह सभी एयर होस्टेस के कार्यों पर निगरानी रखती थी और उनकी हेड थी. 5 सितंबर 1986 को Pan Am Flight 73 में नीरजा अपनी सेवा देने के लिए सवार हुई थीं. Pan Am Flight 73 एक अमेरिकी फ्लाइट थी और यह मुंबई से न्यूयार्क के लिए जा रही थी. इस प्लाइट को मुंबई के बाद कराची, पाकिस्तान रूकना था और फिर फ्रैंकफर्ट और फिर न्यूयार्क जाना था. मुंबई से यह फ्लाइट अच्छे से निकल गई थी. कराची में जब फ्लाइट ने ब्रेक लिया और वहां से यात्रियों को लेने के बाद उड़ान भरने वाली थी, तभी चार फिलिस्तीनी आतंकवादी फ्लाइट में घुस गए और प्लेन को हाइजैक कर लिया था. ये आतंकवादी अबू निदाल संगठन (Abu Nidal Organization – ANO) से जुड़े थे. इनका उद्देश्य अमेरिकी नागरिकों और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर अमेरिकी जेलों में बंद फिलीस्तीनी कैदियों को रिहा करना था. यह संगठन उस समय फिलीस्तीनी उग्रवादी गतिविधियों में शामिल था और काफी कुख्यात भी था. कैदियों की रिहाई के अलावा ये आतंकवादी फिलिस्तीनी मुद्दे के प्रति विश्व का ध्यान भी खिंचना चाहते थे. आतंकवादी यह चाहते थे कि विमान को हाईजैक करके उसे साइप्रस या इजराइल की ओर ले जाया जाए और वहां बड़ी डील की जा सके.
नीरजा की समझदारी से आतंकवादियों की योजना हुई विफल
Pan Am Flight 73 जब कराची में ब्रेक जर्नी पर था, तो 4 आतंकवादी फ्लाइट में घुस आए थे. जैसे ही आतंकी फ्लाइट में घुसे फ्लाइट पर्सर नीरजा भनोट ने इसकी सूचना अपने कैप्टन को दे दी. फ्लाइट के कैप्टन को जैसे ही यह सूचना मिली वे कॉकपिट के छत में बनी एक आपातकालीन खिड़की ( overhead hatch) से निकल भागे, जिसकी वजह से आतंकवादी फ्लाइट को अपनी इच्छानुसार साइप्रस की ओर नहीं ले जा पाए. इससे नाराज होकर आतंकवादियों ने यात्रियों को बंधक बना लिया और पूरे विमान में दहशत का माहौल बना दिया. उस वक्त विमान में बूढ़े, जवान और बच्चे भी शामिल थे. चूंकि विमान के कैप्टन वहां से बचकर निकलकर भागे थे, इसलिए नीरजा भनोट उनमें सबसे सीनियर थी, इसलिए उसने मोर्चा संभाला और आतंकवादियों से रिक्वेस्ट करने लगी कि वे यात्रियों को छोड़ दे. फ्लाइट से बचकर भागे कैप्टन ने पाकिस्तानी एविशन विभाग को घटना की पूरी जानकारी दी और मदद मांगा.
नीरजा ने बचाई 360 लोगों की जिंदगी और खुद हुई कुर्बान
एयर होस्टेस नीरजा भनोट ने अपनी समझदारी और सूझबूझ से विमान पर सवार 380 लोगों में से 360 की जान बचा ली थी, भले ही उन्हें खुद अपनी कुर्बानी देनी पड़ी. आतंकवादियों ने 17 घंटे तक विमान को हाईजैक रखा और जब रात को विमान की बिजली डिस्चार्ज होने लगी तो उन्होंने फायरिंग शुरू कर दी. इससे पहले आतंकवादियों ने एक भारतीय अमेरिकी नागरिक को ऊपर से फेंक कर गोली मार दी थी. उन्होंने नीरजा भनोट से यह कहा कि वह यात्रियों से उनका पासपोर्ट जमा करवाए, ताकि अमेरिकियों की पहचान कर उन्हें मारा जा सके. उस वक्त नीरजा भनोट ने उनका पासपोर्ट छुपा कर उन्हें बचाया था. रात को जब फ्लाइट की बिजली बंद होने लगी तो आतंकवादियों ने फायरिंग शुरू कर दी, नीरजा ने उन्हें समझाकर फायरिंग रोकने को कहा, लेकिन उन्होंने फायरिंग नहीं रोकी. तब नीरजा ने इमरजेंसी डोर खोलकर यात्रियों को वहां से निकालना शुरू किया. वह सभी यात्रियों को आतंकवादियों से बचाकर वहां से निकाल रही थी. उसने बच्चों और बूढ़ों को वहां से निकाला. जब वह तीन बच्चों को गार्ड करके वहां से निकाल रही थी, तो एक आतंकी दे उसे देख लिया और उसे बाल पकड़कर खिंचा और गोली मार दी. गोली लगने से पहले नीरजा ने फ्लाइट के अधिकतर यात्रियों को बाहर निकाल दिया तब तक पाकिस्तानी कमांडो विमान में घुस गए और आतंकियों को पकड़ लिया, लेकिन इस विमान पर सवार 380 लोगों में से 360 की मौत हो गई, जिनमें से नीरजा भनोट भी एक थीं.
नीरजा बनीं सबके लिए प्रेरणा
नीरजा भनोट को भारत सरकार ने 1987 में सिविलियन को दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र प्रदान किया. वह सबसे कम उम्र में यह पुरस्कार पाने वाली पहली महिला हैं. उनके बाद भी यह पुरस्कार मात्र एक महिला कमलेश कुमार यादव को मिला है, जो संसद पर हुए हमले में शहीद हो गई थीं. कमलेश कुमार यादव सीआरपीएफ की जवान थीं. नीरजा भनोट को पाकिस्तान सरकार ने भी अपना चौथा सर्वोच्च पुरस्कार तमगा-ए-इंसानियत, 1987 में प्रदान किया. अमेरिकी सरकार ने नीरजा को फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हीरोइज्म अवार्ड 1987 प्रदान किया था. नीरजा एक पत्रकार की बेटी थीं, उनका जन्म चंडीगढ़ में हुआ था, लेकिन पूरी पढ़ाई मुंबई में हुई थी. नीरजा ने फ्लाइट में जिन बच्चों की जान बचाई, उनमें से एक 7 साल का बच्चा था, जो आगे चलकर एक प्रमुख विमान कंपनी का पायलट बना, उसने यह बयान दिया है कि उसकी जिंदगी का हर दिन नीरजा भनोट का शुक्रगुजार है. वह नीरजा को अपनी प्रेरणा मानता है और उसकी को ध्यान में रखकर उसने अपना करियर चुना. नीरजा के बारे में कहा जाता है कि वह राजेश खन्ना की बहुत बड़ी फैन थीं और हमेशा उनके डायलाॅग बोला करती थीं, अपनी मां को भेजे अपने लास्ट संदेश में भी उन्होंने कहा था-पुष्पा आई हेड टियर्स.
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