Raj Thackeray : 5 जुलाई 2025 का दिन महाराष्ट्र के इतिहास में बहुत ही खास होने वाला है, क्योंकि 20 साल के अंतराल के बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे दोनों साथ एक मंच पर आए हैं. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे मराठी अस्मिता के लिए एक साथ आएं हैं. महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता की लड़ाई नई नहीं है, शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे ने इसी मुद्दे पर आजीवन अपनी राजनीति की. 2025 में मराठी अस्मिता का मुद्दा तब गरमाया जब आरएसएस के वरिष्ठ नेता भैयाजी जोशी ने मार्च महीने में यह बयान दे दिया था कि मुंबई की कोई खास भाषा नहीं है, यहां कई भाषाएं बोलीं जाती हैं, इसलिए यह जरूरी नहीं है कि यहां रहने वाले को मराठी सीखना जरूरी है. भैयाजी जोशी के बयान पर काफी हंगामा मचा था और मराठी भाषा और मराठी मानुष का मुद्दा गरमाया था.
हिंदी विरोध का मामला महाराष्ट्र में नया नहीं है
भारत में 1950-60 के दशक में भाषा के आधार पर राज्यों का निर्माण किया गया. भाषाई आधार पर राज्यों का निर्माण होने से लोगों के अंदर अपनी पहचान को लेकर जंग शुरू हुआ है. एक मई 1960 को भाषा के आधार पर गुजरात से महाराष्ट्र को अलग कर दिया और मराठी यहां की भाषा बनी. उसी वक्त से मराठी भाषा और मराठी अस्मिता की गूंज पूरे राज्य में उठी और महाराष्ट्र में हिंदी विरोध की शुरुआत हुई. इसकी वजह यह थी कि महाराष्ट्र के लोग अपनी भाषा को हिंदी और गुजराती से बचाना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें यह लगता था कि हिंदी और गुजराती का वर्चस्व कायम हुआ तो उनके मराठी अस्तित्व को नुकसान पहुंचेगा. 1980 के दशक में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने आक्रामक राजनीति की और यह साबित करने की कोशिश की कि गैर मराठी लोग मराठियों के अधिकारों को छीन रहे हैं. उनका यह कहना था कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग महाराष्ट्र आकर नौकरी कर रहे हैं, जिससे उनकी भाषा और अस्मिता को खतरा उत्पन्न हो गया और ये हिंदी भाषी लोग मराठियों के अधिकारों का हनन कर रहे हैं. बाल ठाकरे इस बात से काफी नाराज दिखते थे और उनका यह कहना था कि मुंबई में सबसे ज्यादा मराठी अस्मिता को खतरा है. बाला साहेब ठाकरे के बाद उनके भतीजे राज ठाकरे ने मराठी भाषा और मराठा मानुष की बातों को जोर-शोर से उठाया और हिंदी भाषियों का विरोध किया. वे बाला साहेब ठाकरे की तरह की बहुत आक्रामक रुख रखते हैं.
हिंदी विरोध को लेकर अभी क्यों गरमाया है मामला?
महाराष्ट्र में हिंदी विरोध का ताजा मामला तब सामने आया जब महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने कक्षा 1-5 तक के बच्चों के लिए तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को पढ़ना अनिवार्य करने का आदेश जारी किया. इस आदेश के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना और मनसे का विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया और उन्होंने यह आरोप लगाया कि सरकार मराठियों पर हिंदी थोप रही है. यह विरोध इतना तीव्र हुआ कि सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा. इससे पहले भैयाजी जोशी के उस बयान पर भी मराठी भड़क गए थे, जिसमें उन्होंने यह कह दिया था कि मुंबई में रहने के लिए मराठी भाषा सीखना जरूरी नहीं है, क्योंकि यहां सिर्फ मराठी ही नहीं बोली जाती है.
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के साथ आने पर महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या होगा असर?
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अगर मराठी अस्मिता के नाम पर तमाम मतभेद भुलाकर साथ आ जाते हैं, तो महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा परिवर्तन दिख सकता है, क्योंकि अभी मराठी वोटर्स बंटे हुए हैं. राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के एक छत्र के नीचे आने से मराठी वोटर्स एक साथ हो जाएंगे और यह बीजेपी के लिए बड़ा नुकसान होगा. अभी शिवसेना शिंदे गुट उनके साथ है, लेकिन मराठी अस्मिता के लिए वे भी घर वापसी कर सकते हैं. उस स्थिति में बीजेपी के लिए वहां सरकार चला पाना कठिन हो सकता है. राज ठाकरे का क्रेज युवाओं में बहुत अधिक है, क्योंकि वे काफी आक्रामक बयानबाजी करते हैं और उग्र हिंदुत्व उनका मुद्दा भी है. मंच से उद्धव ठाकरे ने बीजेपी पर हमला किया है और उन्हें लोगों को बांटने वाला बताया है. उन्होंने कहा है कि मैं और राज साथ है यह महत्वपूर्ण है.
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच क्यों हुआ था विवाद
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे चचेरे भाई हैं. इन दोनों के विवाद राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर बढ़ा. दरअसल राज ठाकरे ने बाला साहेब के अंदाज में राजनीति शुरू की. उनके भाषण और अंदाज उतने ही आक्रामक हुआ करते थे, जितने बाला साहेब के थे. इस वजह से राज ठाकरे को यह उम्मीद थी कि उन्हें बाला साहेब का उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा. राज ठाकरे बाला साहेब के छोटे भाई श्रीकांत ठाकरे के बेटे हैं. राज ठाकरे नाराज तब हुए जब बाला साहेब ने उनकी जगह उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इसके बाद राज ठाकरे अलग हो गए और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया, जो मराठी अस्मिता की राजनीति करती है. अब दोनों भाइयों के बीच सुलह हो गई और दोनों राजनीतिक हित के लिए साथ खड़े दिख रहे हैं.
Also Read : कानूनन क्या होगी बच्चे की जाति अगर माता-पिता अलग जाति के हैं और परिस्थितियां कुछ इस तरह की हैं…
क्या आप जानते हैं बिहार राज्य का नाम बिहार कब पड़ा? यहां पढ़ें पूरी कहानी
विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें
जब शिबू सोरेन ने कहा था- हमें बस अलग राज्य चाहिए
संताल आदिवासी थे शिबू सोरेन, समाज मरांग बुरू को मानता है अपना सर्वोच्च देवता
शिबू सोरेन ने अलग राज्य से पहले कराया था स्वायत्तशासी परिषद का गठन और 2008 में परिसीमन को रुकवाया
Dictators and his Women 1 : हिटलर अपनी सौतेली भांजी के लिए था जुनूनी, ईवा ब्राउन से मौत से एक दिन पहले की शादी