Bihar Politics : बिहार की पहली एमए पास महिला रामदुलारी सिन्हा, जो केरल की राज्यपाल बनीं

Ram Dulari Sinha : बिहार की छवि एक ऐसे राज्य की है जिसे पिछड़ा माना जाता है,ऐसे राज्य में आजादी के आंदोलन में सक्रिय निभाने वाली और एक सुशिक्षित महिला का गौरव हासिल करने वाली रामदुलारी सिन्हा ने अपने कार्यों से बिहार की राजनीति में एक लकीर खिंची, जिसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है. वो बिहार की पहली एमए पास महिला थीं, जिन्होंने राज्य और केंद्र सरकार में जगह बनाई और फिर केरल की राज्यपाल भी बनीं.

By Rajneesh Anand | June 10, 2025 7:12 PM
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Ram Dulari Sinha : रामदुलारी सिन्हा, बिहार की राजनीति में एक ऐसा नाम हैं जिनके नाम कई तरह के रिकाॅर्ड दर्ज हैं. वो बिहार की पहली ऐसी महिला राजनेता हैं, जिन्हें गवर्नर बनने का गौरव हासिल हुआ. रामदुलारी सिन्हा ने ना सिर्फ स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया, बल्कि उन्होंने उस समय के समाज में मौजूद पर्दा प्रथा और दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान भी चलाया था. रामदुलारी सिन्हा एक सुशिक्षित परिवार से आती थीं, यही वजह है कि उन्हें बिहार की पहली एमए पास महिला होने का खिताब भी हासिल हुआ था.

रामदुलारी सिन्हा बिहार की पहली एमए पास महिला

रामदुलारी सिन्हा को बिहार की पहली एमए पास महिला होने का गौरव हासिल था. उनका परिवार एक पढ़ा-लिखा परिवार था और स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भी था, इसी वजह से रामदुलारी सिन्हा को भी शिक्षा का अवसर मिला. शिक्षा के साथ ही रामदुलारी सिन्हा ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया. रामदुलारी सिन्हा एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने खुद की शिक्षा के साथ ही महिलाओं की शिक्षा पर भी बहुत ध्यान दिया. उन्होंने हमेशा यह प्रयास किया कि महिलाएं सशक्त हों और आगे बढ़ें, इसके लिए उन्होंने स्त्री शिक्षा पर काफी जोर दिया.

हजारीबाग में वाइस प्रिंसिपल रहीं थीं रामदुलारी सिन्हा

रामदुलारी सिन्हा झारखंड के हजारीबाग स्थित महिला महाविद्यालय में वाइस प्रिंसिपल रही थीं. उनके पुत्र मधुरेंद्र सिन्हा ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में बताया कि रामदुलारी सिन्हा के पिता स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने पूरा जीवन सामाजिक कार्यों में लगाया. वे दलितों की बस्ती में सफाई कार्य करते थे, जिसकी वजह से उन्हें झाड़ू बाबा कहा जाता था. रामदुलारी सिन्हा के पांच भाई बहन थे और सभी सुशिक्षित थे. नानाजी के प्रगतिशील सोच ने रामदुलारी सिन्हा और अन्य बच्चों को आत्मनिर्भर बनाया था. वो हमेशा महिलाओं को प्रोत्साहित करती थीं और उनसे आत्मनिर्भर बनने की बात कहती थीं. उनकी शिक्षा के लिए उन्होंने हमेशा मदद उपलब्ध कराई. गोपालगंज के माणिकपुर गांव जहां उनका जन्म हुआ था, उन्होंने वहां एक काॅलेज लड़कियों के लिए खुलवाया और सीतामढ़ी में भी काॅलेज की स्थापना करवाई. एक बार उन्होंने कांग्रेस की नीतियों की आलोचना अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में की थी, जिसपर नेहरू जी ने उनकी बहुत तारीफ की थी. वो राजनीति का अलग दौर था. वो अपनी पार्टी के प्रति समर्पित थीं, उन्होंने कभी भी कांग्रेस को नहीं छोड़ा और नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी के समय भी समर्पण के साथ काम किया.

रामदुलारी सिन्हा महिलाओं को पर्दे से बाहर लेकर आईं

रामदुलारी सिन्हा की यह कोशिश थी कि जिस तरह उनके परिवार ने उन्हें शिक्षित होने का मौका दिया और एक बेहतर जीवन जीने का अवसर प्रदान किया, वैसा ही मौका बिहार की महिलाओं को भी मिले. उस वक्त बिहार में महिलाओं की सामाजिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन्हें शिक्षा का बेहतर मौका मिलता. वे पर्दे के पीछे रहती थीं, यही वजह थी कि रामदुलारी सिन्हा ने महिलाओं को पर्दे से बाहर लाने की कोशिश की.

1947-48 में बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस की महासचिव बनीं

रामदुलारी सिन्हा बिहार के गोपालगंज की रहने वाली थीं. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. उनकी सक्रियता और समर्पण को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ने उन्हें 1947-48 में बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस महासचिव का पद सौंपा. साथ ही उन्हें बिहार महिला कांग्रेस का संगठन सचिव बनाया गया. जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए उन्होंने 1951 में बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और मेजरगंज निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतीं. यह उनकी सक्रिय राजनीति में पहली जीत थी. उसके बाद उन्होंने 1962 में पटना लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीतीं. उसके बाद उन्होंने 1969 और 1972 में गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीतीं. इसके बाद उन्होंने फिर 1980 और 1984 में शिवहर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीतीं.

केंद्रीय राज्यमंत्री और राज्यपाल के पद पर हुईं नियुक्त

रामदुलारी सिन्हा की राजनीतिक सक्रियता के बाद उन्हें 1971 से 1977 में बिहार सरकार में राज्य कैबिनेट मंत्री के रूप में योगदान देने का अवसर मिला. उन्होंने श्रम और रोजगार, पर्यटन, गन्ना, समाज कल्याण और संसदीय मामलों सहित विभिन्न विभागों का प्रबंधन किया.1980 से 1984 उन्होंने विभिन्न केंद्रीय राज्य मंत्रालयों में कार्य किया. उन्हें केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण विभाग में राज्यमंत्री का पद मिला इसके बाद वे इस्पात एवं खान मंत्रालय और उद्योग मंत्रालय में भी राज्यमंत्री रहीं. उन्होंने केंद्रीय गृहराज्यमंत्री मंत्री का पद भी संभाला था. इसके बाद 1988 में उन्हें केरल की राज्यपाल बनाया गया, जहां वे 12 फरवरी 1990 तक कार्यरत रहीं. 31 अगस्त 1994 में उनका निधन हार्ट अटैक से हो गया.

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