Revolutionary Women : गुमनाम झांसी की रानी रामस्वरूपा देवी

बिहार के अमनौरा स्टेट की बहुरिया जी जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया और बिहार के स्वतंत्रता संग्राम में महिला शक्ति का परिचय दिया।

By Pratyush Prashant | June 24, 2025 4:56 PM
an image

Table of Contents

Revolutionary Women: भारत की आज़ादी की लड़ाई में बहुत से नाम सामने आए—महात्मा गांधी, पं. नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और सैकड़ों अन्य। इस लड़ाई में कुछ ऐसी गुमनाम आवाजें भी थीं, जिन्होंने न केवल अंग्रेजों से लोहा लिया, बल्कि अपने क्षेत्र के जनमानस को स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकजुट किया. ऐसी ही एक साहसी महिला थीं — रामस्वरूपा देवी, जिन्हें बिहार के अमनौर स्टेट में “बहुरिया जी” के नाम से जाना जाता है.

कहलगांव से अमनौर तक का सफर

बहुरिया जी का जन्म बिहार के भागलपुर जिले के कहलगांव थाना अंतर्गत मुहान गांव में हुआ था. उनके पिता बाबू भूपनारायण सिंह एक प्रतिष्ठित भू-स्वामी और शिक्षित व्यक्ति थे, जिन्होंने बेटी को भी उच्च शिक्षा दिलाई. उस समय जब लड़कियों का स्कूल जाना तक असामान्य था, रामस्वरूपा देवी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी — यह खुद में एक क्रांतिकारी कदम था.उनका विवाह सारण जिले के अमनौर स्टेट के जमींदार बाबू हरिमाधव प्रसाद सिंह से हुआ. अमनौर एक छोटा किंतु प्रतिष्ठित राज्य था, जिसकी पहचान अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ने वालों की अग्रिम पंक्ति में होती थी.

एक दिन अमनौर में सुराजी सभा (कांग्रेस समर्थकों की सभा) आयोजित की गई थी. सभा में भीड़ उमड़ी थी, लेकिन अंग्रेजों के गोली चलाने के बाद लोग डरकर भागने लगे. तभी बहुरिया जी मंच पर खड़ी हो गईं और उन्होंने ललकारते हुए कहा:”अगर डरकर भागना है तो इतनी दूर भागो जहां फिरंगियों की गोली न पहुंचे। अगर इतना साहस नहीं तो ये मेरी चूड़ियां ले लो और औरतों की तरह घर बैठ जाओ!”

यह सुनते ही भागती भीड़ रुक गई. ‘जय बजरंग बली’, ‘भारत माता की जय’, ‘महात्मा गांधी की जय’ और ‘बहुरिया जी की जय’ के नारे लगने लगे। सभा स्थल पर जैसे क्रांति की चिंगारी फूट पड़ी हो.

Revolutionary Women : जब गोली चली और बागी बन गई भीड़

सभा के दौरान एक सूचना आई कि पास ही अंग्रेजी पलटन खड़ी है और सिपाही रायफल लेकर सभा स्थल की ओर बढ़ रहे हैं. बहुरिया जी ने तब लोगों को संबोधित करते हुए कहा:”यह देश हमारा है. हम अपना अधिकार लेकर रहेंगे. अब भागना नहीं है, मरना पड़े तो मर जाएंगे लेकिन झुकेंगे नहीं.”

सभा स्थल पर गोली चलने की आवाज आई. संयोग से आम के एक पेड़ की डाल गिर गई. लोगों को भ्रम हुआ कि बहुरिया जी को गोली लगी है. भीड़ बेकाबू हो गई और सिपाहियों पर हमला कर दिया. लाठी, फरसा, बर्छा से लैस लोग गोरे सिपाहियों पर टूट पड़े. छह सिपाही मारे गए.

सभा स्थल से भागता हुआ एक अंग्रेज ड्राइवर एक ग्वाले के घर में जा घुसा. ग्वाला चारा काट रहा था और उसने पहचान लिया कि यह गोरा है. कुछ समय पहले एक गोरे अफसर ने उससे दूध लेकर पैसे नहीं दिए थे. उसका गुस्सा आज फूट पड़ा. गड़ांसी और मूसल से उस गोरे ड्राइवर की हत्या कर दी गई.

अब स्थिति विस्फोटक थी। बहुरिया जी ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई. मरे हुए सात अंग्रेज सिपाहियों की लाशों को बैलगाड़ियों में लादकर गंडक नदी में डुबो दिया गया. उनके हथियारों को पास के नीतन गांव के भुतहा कुएं में डाल दिया गया. सबूत मिटाने का काम पूरी तरह सुनियोजित और सफल रहा.रात में बहुरिया जी के आवास पर एक गुप्त बैठक हुई। बाहर तेज बारिश हो रही थी। बहुरिया जी ने कहा,”ईश्वर हमारे साथ है. आज की घटना किसी के मुंह से बाहर नहीं जानी चाहिए.”

अंग्रेजों का दमन और आज़ादी के बाद की उदासी

अगस्त क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने अमनौर और मरहौड़ा क्षेत्र में भयंकर दमनचक्र चलाया. लोगों पर 50 गुना चौकिदारी टैक्स लगाया गया. गांवों में मिर्ची गैस की कोठरी, रस्सियों से बांधकर घसीटना, उंगलियां तोड़ना जैसी अमानवीय यातनाएं दी गईं. स्कूल, पुस्तकालय, सुराज आश्रम जैसे सार्वजनिक संस्थान जला दिए गए. अमनौर के जवाहर बाग, जहां खुद पं. नेहरू ठहरे थे, को भी नष्ट कर दिया गया. इन अत्याचारों को झेलने वाले बहादुरों को आज़ादी के बाद भी वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे.

भारत गणराज्य के प्रथम आम चुनाव में बहुरिया रामस्वरूपा देवी बिहार विधान सभा के लिए विशाल बहुमत से निर्वाचित हुई. जनता ने उन्हें झांसी की रानी की तरह बिहार की लक्ष्मी बाई की संज्ञा से विभूषित किया. लेकिन अधिक दिनों तक वह स्वतंत्र भारत की सेवा नहीं कर सकीं. 29 नवम्बर 1953 को उनकी मृत्यु हुई.  अहिंसा की राजनीति में बहुरिया जी जैसे सशस्त्र विद्रोहियों की गाथाएं उपेक्षित कर दी गईं.

बहुरिया जी की कहानी महज़ एक व्यक्ति की नहीं है, यह उस स्त्री-शक्ति की मिसाल है जो भारत की आज़ादी की नींव में शामिल रही, पर जिसे इतिहास की मुख्यधारा ने भुला दिया. आज जब हम स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा करते हैं, तो ऐसे अज्ञात नायकों और नायिकाओं को याद करना हमारा कर्तव्य है.

सोर्स

आशारानी व्होरा, महिलाएं और स्वराज, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार

Also Read: 50 Years of Emergency : इमरजेंसी की घोषणा से बना था डर का माहौल, शाम 5 बजे के बाद घरों में दुबक जाते थे लोग

50 Years of Emergency : इमरजेंसी के बाद युवाओं ने कब्रिस्तान में की मीटिंग, घर से बाहर निकाली इंदिरा गांधी की तस्वीर

50 Years of Emergency : बिहार के योग गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी, जो इमरजेंसी में थे इंदिरा गांधी के खास सलाहकार

विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version