Table of Contents
- Story Of Partition Of India : 10 लाख लोगों की हुई थी मौत
- रावलपिंडी दंगे से हुई थी शुरुआत
- रावलपिंडी दंगे का असर पूरे देश पर हुआ
- 1.5 करोड़ लोगों को अपनी जमीन छोड़कर दूसरी ओर जाना था
Story Of Partition Of India 2 : ‘आज सायंकाल 5 बजकर 20 मिनट पर दिल्ली में महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई, उनका हत्यारा हिंदू था.’ 30 जनवरी 1948 को रेडियो से शाम के छह बजे यह शोक समाचार प्रसारित किया गया. बिड़ला हाउस से पुलिस ने रेडियो को जो जबसे महत्वपूर्ण समाचार भेजा था, उसमें इस बात का जिक्र किया गया था कि बापू का हत्यारा नाथूराम गोडसे हिंदू ब्राह्मण है. उस वक्त महात्मा गांधी के हत्यारे के बारे में यह बताना बहुत जरूरी था कि वह हिंदू था, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया जाता, तो हिंदुस्तान एक बार फिर सांप्रदायिक दंगे की आग में झुलसने लगता. बिड़ला हाउस में महात्मा गांधी ने अपने जीवन के अंतिम लगभग 144 दिन बिताए थे और यहीं उनकी हत्या भी हुई थी. इस घटना का जिक्र आज इसलिए क्योंकि गणतंत्र दिवस के 75 साल पूरे होने के मौके पर हम उन घटनाओं का स्मरण कर रहे हैं, जिनका असर हमारे देश और समाज पर आज भी दिखता है. भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ था, जिसने नफरत की एक दीवार देश में खड़ी कर दी थी.
Story Of Partition Of India : 10 लाख लोगों की हुई थी मौत
अंग्रेजों ने भारत को आजादी देते हुए जो घिनौना खेल खेला था, उसकी वजह से पूरा देश हिंदू-मुस्लिम हिंसा की आग में धधक उठा था और कुल 10 लाख लोगों की मौत हुई थी. उस वक्त ब्रिटिश सरकार को यह अंदेशा भी नहीं था कि विभाजन की यह आग इस कदर फैलेगी. डोमनीक लापिएर और लैरी काॅलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एड मिडनाइट’ में लिखा है कि जिन लोगों को गोली मारी गई, उनकी खुशकिस्मती थी, अन्यथा अधिकतर लोगों को हैवानियत की हद तक प्रताड़ित कर मारा गया था. किसी को लाठी डंडे से पीटकर मारा गया, तो किसी को पत्थर से कूचकर. लोगों पर नफरत इस कदर हावी था कि वे पागल हो गए थे और गला दबाकर और नाखूनों से नोंचकर भी लोगों को मारने पर आमदा थे. किताब में यह जिक्र भी है कि लोगों को जिंदा जला दिया गया था और महिलाओं को मारने से पहले उनके स्तन काट दिए जाते थे और बलात्कार किया जाता था.
रावलपिंडी दंगे से हुई थी शुरुआत
भारत के विभाजन के बाद जो हिंसा फैली थी उसकी शुरुआत भारत विभाजन से पहले ही हो गई थी. ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में एक भयंकर हिंसा हुई थी, जिसके बारे में यह कहा जाता है कि इस हिंसा में 2000 से 7000 हिंदू और सिख मारे गए थे. इन लोगों की हत्या इसलिए की गई थी क्योंकि कुछ हिंदू और सिख संगठनों ने भारत के विभाजन और पाकिस्तान की मांग का विरोध किया था.इनके प्रदर्शनों से मुसलमान नाराज हो गए और इनकी नाराजगी का परिणाम सिखों और हिंदुओं की हत्या के रूप में सामने आया. ‘थोहा खालसा’ रावलपिंडी जिले का एक गांव था जहां भयंकर नरसंहार हुआ. इस गांव में सिख और हिंदू एक गुरुद्वारे में आसरा लेकर बैठे थे. यह गांव सिखों का था, लेकिन आसपास मुसलमानों के गांव थे, जहां से हमलावर आए और गांव वालों पर हमला किया. गांव के लोगों ने पैसे देकर जान बचाने की कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी और अंतत: गांव के लगभग 200 लोग मारे गए, महिलाएं जिनकी संख्या सौ के आसपास बताई जाती है, अपने बच्चों के साथ गुरुद्वारा परिसर में स्थित कुएं में कूद गईं. कुछ महिलाओं को उनके घरवालों ने ही तलवार से काट दिया, ताकि वे बलात्कार और अन्य प्रताड़ना का शिकार ना हों.
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रावलपिंडी दंगे का असर पूरे देश पर हुआ
रावलपिंडी में जो नरसंहार हुआ, उसने नफरत की आग पूरे देश में भड़का दी थी. हिंदू और सिखों ने मुसलमानों से बदला लेने की ठान ली थी. बदले की भावना तब और खतरनाक हो गई जब देश का विभाजन भारत और पाकिस्तान के रूप में स्वीकार कर लिया गया. जिस इलाके में जिसका दबदबा था उन्होंने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किया. सिर्फ हिंदू और सिख ही इस दंगे में नहीं मारे गए बल्कि मुसलमान भी हजारों की संख्या में मारे गए.
1.5 करोड़ लोगों को अपनी जमीन छोड़कर दूसरी ओर जाना था
जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो 10 मिलियन यानी एक करोड़ हिंदुओं को अपना घरबार छोड़कर भारत की धरती पर आना था, वहीं भारत से 5 मिलियन यानी 50 लाख मुसलमानों को पाकिस्तान जाना था. इनके लिए कोई खास इंतजाम नहीं थे, ये मीलों पैदल चलकर अपना सफर तय कर रहे थे. रास्ते में कई लोग हिंसा का भी शिकार बने, कुछ तकलीफ झेल नहीं पाए और मर गए, कुछ भूख से मर गए और इस तरह के लोगों की संख्या हजारों-लाखों में थी. यही वजह है कि 10 लाख से अधिक लोग इस विभाजन की त्रासदी का शिकार बने और मारे गए.
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FAQ : रावलपिंडी नरसंहार कब हुआ था?
रावलपिंडी नरसंहार आजादी से पहले मार्च 1947 में हुआ था.
भारत का विभाजन किस आधार पर हुआ?
भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था.
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