Was Mughal Anti Hindu: क्या हिंदू विरोधी थे मुगल, या फिर कुछ और थी सच्चाई

Was Mughal Anti Hindu: भारत में मुगलिया सल्तनत की नींव बाबर ने रखी. जबकि अंतिम बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय थे. मुगल बादशाहों ने अपने-अपने कार्यकाल में बेहतरीन कामों के लिए सुर्खियां बटोरीं. वहीं कुछ का नाम इतिहास में क्रूर शासकों के रूप में दर्ज है. इनमें से कुछ का नाम हिंदू धर्म के कट्टर विरोधियों के रूप में भी लिया जाता है.

By Amit Yadav | April 13, 2025 12:12 PM
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Was Mughal Anti Hindu: औरंगजेब का नाम मुगलिया सल्तनत के सबसे क्रूर शासकों के रूप में दर्ज है. वहीं अकबर और शाहजहां को इतिहासकार लोकप्रिय बताते रहे हैं. अकबर का नाम मुगल बादशाहों द्वारा हिंदूओं पर लगाए जाने वाले जजिया कर को समाप्त करने के लिए जाना जाता है. वहीं औरंगजेब का कार्यकाल हिंदुओं पर अत्याचार और उनसे जजिया वसूली दोबारा शुरू करने के लिए जाना जाता है. लेकिन एक ऐसा भी मुगल बादशाह हुआ, जिसने हिंदू तीर्थ यात्रियों से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के संगम में पवित्र डुबकी लगाने के लिए लिया जाने वाला कर समाप्त कर दिया था. इसके लिए बकायदा एक शाही फरमान जारी किया गया था. जो आज भी तेलंगाना सरकार के पास सुरक्षित है.

250 साल पुराने दस्तावेज में जानकारी

तेलंगाना सरकार के राज्य अभिलेखागार और अनुसंधान संस्थान (Telangana state archives and research Institute-TSARI) के पास 250 साल से अधिक पुराना एक दस्तावेज सुरक्षित है. इस दस्तावेज में जानकारी दी गई है कि 1773 में इलाहाबाद में पवित्र स्नान के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए कर माफी का आदेश दिया गया है. इस दस्तावेज में अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि किसी भी तीर्थ यात्री से किसी भी तरह की फीस नहीं ली जाएगी. यदि कर लेना जरूरी होगा तो सरकार इसका खर्च उठाएगी. इस दस्तावेज में स्थानीय प्रशासन को निर्देश दिए गए थे कि वो इसे कड़ाई से लागू कराएं. इस दस्तावेज में ये भी जिक्र किया गया था कि गुजराती और मराठी बड़ी संख्या में धार्मिक स्नान के लिए इलाहाबाद पहुंचते हैं.

किस मुगल बादशाह ने जारी किया आदेश

दस्तावेज बताता है कि इलाहाबाद संगम में पवित्र स्नान के लिए हिंदू तीर्थ यात्रियों से कर न लेने का आदेश मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने दिया था. वो मुगल साम्राज्य के 16वें सम्राट थे और आलमगीर द्वितीय का पुत्र थे. जिसका शासन 1760 से 1806 तक रहा था. हाथ से बने कागज के इस दस्तावेज पर शाह आलम की शाही मुहर भी है. जो इसकी प्रमाणिकता बताता है. इतिहास में दर्ज है कि शाह आलम को मराठों ने 1771 में दिल्ली की गद्दी पर बैठाया था. क्योंकि शाह आलम जब बिहार में था, तभी उसके पिता आलमगीर द्वितीय की हत्याकर दी गई. इस पर शाह आलम ने बिहार से ही स्वयं को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया. लेकिन दिल्ली में दूसरी ही साजिश चल रही थी. यहां दिल्ली के इमाद और अमीरों ने कामबख्श को पौत्र मुही-उल-मिल्लर को शाहजहां द्वितीय घोषित करके दिल्ली के सिंहासन पर बैठा दिया. इस तरह शाह आलम तीन तरफ से दुश्मनों से घिरा हुआ था. दिल्ली के अपने बीच के दुश्मन, अंग्रेजों और मराठों के कारण वो संकट में था. ऐसे में उसकी मराठों ने दिल्ली के तख्त पर बैठाने में मदद की.

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