पहला दिन : शैलपुत्री दुर्गा का ध्यान
मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करेनवाली वृष पर आरूढ़ होनेवाली, शूलधारिणी, यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं.
नवरात्र व्रत एवं उपासना-एक नवरात्र के अवसर पर भगवती दुर्गा की उपासना भारतीय संस्कृति की गौरवमय आधार है. ऐश्वर्य तथा पराक्रम प्रदान करेनवाली शक्ति नित्य के व्यावहारिक जीवन में आपदाओं का निवारण कर ज्ञान, बल, क्रियाशक्ति प्रदान कर, धर्म, अर्थ, काम की याचक की इच्छा से भी अधिक पूर्ति कर जीवन को लौकिक सुखों से धन्य बना देती है. मां दुर्गा की उपासना से साधक का व्यक्तित्व सबल, सशक्त, निर्मल एवं उज्ज्वल कीर्ति से सुरभित होता है. शक्ति उपासक अलौकिक परमानंद को प्राप्त कर मुक्ति का अधिकारी हो जाता है.
स्वयं मां दुर्गा कहती हैं –
‘‘शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वित:।।
सर्वाबाधाविनिमरुक्तो धनधान्य सुतान्वित:।।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।।’’
अर्थात : ‘शरत ऋतु’ में मेरी जो वार्षिक महापूजा अर्थात नवरात्र पूजन होता है, उसमें श्रद्धा-भक्ति के साथ मेरे इस ‘देवी माहात्म्य’ अर्थात ‘श्रीदुर्गासप्तशती’ का पाठ या श्रावण करना चाहिए. ऐसा करने पर निस्संदेह मेरे कृपा-प्रसाद से मानव सभी प्रकार की बाधाओं से शेष पेज 9 पर
शैलपुत्री दुर्गा ..
मुक्त होता है और धन-धान्य, पशु-पुत्रदि संपत्ति से संपन्न हो जाता है.’
शक्ति-दर्शनानुसार परब्रह्म से अभिन्न आदिशक्ति भगवती दुर्गा की उपासना इसीलिए की जाती है कि वह साधक को भुक्ति और मुक्ति दोनों का वरदान दे और उपयरुक्त श्लोकों में भगवती दुर्गा श्रीमुख से उसे भुक्ति-सर्वविध भोग प्रदान करने की वचन दे रही हैं.
(क्रमश:) – प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा
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