Ardra Nakshatra 2025: इस साल 22 जून 2025 रविवार को सूर्य देव आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे. यह खगोलीय घटना हर वर्ष आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को होती है. जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तो इसे पृथ्वी के रजस्वला होने की स्थिति कहा जाता है. ज्योतिषीय दृष्टि से इस समय से अगले 52 दिनों तक भारी वर्षा की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं. ऐसी मान्यता है कि यदि नौतपा के दिनों में तीव्र गर्मी पड़ती है, तो इसके पश्चात वर्षा ऋतु में अच्छी बारिश होती है, जिससे कृषि और पर्यावरण दोनों को लाभ होता है.
आर्द्रा नक्षत्र की थाली
बिहार में आर्द्रा नक्षत्र के अवसर पर मानसून के स्वागत में एक पारंपरिक और विशेष भोजन तैयार किया जाता है, जिसे “आर्द्रा नक्षत्र की थाली” कहा जाता है. यह थाली क्षेत्र की कृषि परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक मानी जाती है. इस विशेष भोजन में आमतौर पर दाल पूरी (चने की दाल से भरी हुई पूरियां), चावल की खीर, मौसमी सब्जियां और प्रसिद्ध मालदह आम शामिल होते हैं.
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यह परंपरा इस विश्वास पर आधारित है कि आर्द्रा नक्षत्र वर्षा ऋतु के आगमन का संकेत देता है, जो खेती और फसल की शुरुआत का समय होता है. कुछ लोग इस दिन रसिया (सब्जियों और मसालों से बना रसेदार व्यंजन), दही-आलू की सब्जी और अन्य पारंपरिक मसालेदार करी भी बनाते हैं. यह थाली न केवल स्वाद का अनुभव देती है, बल्कि ऋतु परिवर्तन के स्वागत का भी प्रतीक होती है.
आद्रा नक्षत्र का महत्व
मान्यता है कि जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तो उस समय पृथ्वी रजस्वला अवस्था में मानी जाती है. इसी कारण इस अवधि में भूमि की खुदाई या खेतों की जुताई जैसे कार्य वर्जित माने जाते हैं. इस काल को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र माना गया है. मत्स्य पुराण के अनुसार, यह समय देवी-देवताओं की पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ होता है और इस दौरान की गई उपासना से मनोकामनाएं शीघ्र पूरी होती हैं.
आर्द्रा नक्षत्र के देवता भगवान शंकर के रुद्र रूप माने जाते हैं. “आर्द्रा” का अर्थ होता है “नमी” या “भिगोना”, और यह संकेत करता है कि सूर्य के इस नक्षत्र में प्रवेश करते ही भारत में मानसून के आगमन की शुरुआत मानी जाती है. इसी कारण यह समय कृषि के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्षा इसी अवधि से प्रारंभ होती है और इससे खेती की गतिविधियों की दिशा तय होती है.
सूर्य का आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश जहां बारिश की शुरुआत का संकेत देता है, वहीं यह भी माना जाता है कि इसी काल की वर्षा से वर्ष भर की खेती की सफलता निर्भर करती है. इसके पश्चात सूर्य 6 जुलाई को पुनर्वसु नक्षत्र में प्रवेश करेंगे.