– जल से भरे घड़े का दान (कलश दान)
आषाढ़ माह में भीषण गर्मी एवं प्रारंभिक वर्षा के कारण शीतल जल का विशेष महत्व होता है. इस माह में तांबे या मिट्टी के पात्र में जल भरकर, ऊपर से ढक्कन रखकर तथा तुलसी पत्र डालकर ब्राह्मण या प्यासे जनों को दान देना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है. यह दान पितृ तर्पण, पापनाश और जीवन में शीतलता लाता है..
– छाता, चप्पल एवं वस्त्र का दान
आषाढ़ माह में वर्षा प्रारंभ होती है, अतः यात्रियों, साधु-संतों एवं जरूरतमंदों को छाता, रेनकोट, चप्पल अथवा वस्त्र (विशेषकर कंबल या तौलिया) का दान करना अत्यधिक शुभ फलदायक होता है. यह दान साधक के जीवन में संकटों से सुरक्षा और आरोग्यता प्रदान करता है.
– खाद्य सामग्री एवं अन्नदान
शास्त्रों में अन्नदान को महादान कहा गया है. आषाढ़ मास में गरीबों, गौशालाओं, साधुओं और असहायों को चावल, गेहूं, दालें, गुड़, तिल, घी, नमक आदि का दान अत्यंत शुभ माना गया है. यह दान आर्थिक समृद्धि और धन धान्य में वृद्धि करता है.
– वेदपाठी ब्राह्मणों को फल एवं दक्षिणा का दान
आषाढ़ माह में जो श्रद्धालु वेदपाठी, ऋषि-संतों, और ब्राह्मणों को मौसमी फल (जैसे आम, केला, लीची), शहद, सूखा मेवा और दक्षिणा प्रदान करते हैं, उन्हें चिरकाल तक पुण्य और कुल की उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह दान ज्ञानवृद्धि एवं बुद्धि की शुद्धि में सहायक होता है.
– गाय, भूमि या स्वर्ण का दान
यदि किसी के सामर्थ्य में हो तो आषाढ़ मास में गोदान, भूमिदान अथवा स्वर्णदान करना परम उत्तम माना गया है..यह दान समस्त पापों का नाश करता है और स्वर्गलोक की प्राप्ति का साधन बनता है. इससे वंश की वृद्धि, प्रतिष्ठा और संतति की प्राप्ति भी होती है.
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आषाढ़ मास में श्रद्धा और नियमपूर्वक किया गया दान, साधक को सांसारिक सुखों के साथ आत्मिक शांति भी प्रदान करता है. यह मास तप, सेवा और दान के माध्यम से आत्मशुद्धि का श्रेष्ठ अवसर है.