Ashadh Month 2025: भक्ति, साधना और प्रकृति से जुड़ने का पावन समय

Ashadh Month 2025: आषाढ़ मास 2025 आध्यात्मिक साधना, भक्ति और प्रकृति से जुड़ने का विशेष समय माना जाता है। इस माह में वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जो ध्यान और आत्मचिंतन के लिए अनुकूल होता है। यह समय आत्मिक विकास, ईश्वर भक्ति और जीवन में संतुलन स्थापित करने का अवसर देता है।

By Shaurya Punj | June 14, 2025 11:27 AM
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आचार्य संतोष
ज्योतिष विशारद एवं वास्तु आचार्य

Ashadh Month 2025: आषाढ़ माह भले ही बड़े पर्वों से रहित हो, लेकिन यह प्रकृति के नवजीवन, कृषि की समृद्धि और आध्यात्मिक साधना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण समय है. 11 जून की दोपहर 01:15 बजे से आषाढ़ माह की प्रतिपदा तिथि का आरंभ हो चुका है, जो भारतीय पंचांग के अनुसार वर्ष का चौथा महीना है. यह मास किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसी दौरान खरीफ फसलों की बुवाई की जाती है. यह माह वर्षा ऋतु का प्रवेश द्वार माना जाता है, जब धरती जल से तृप्त होकर नवजीवन का संचार करती है. प्रकृति हरी-भरी होकर एक नयी ऊर्जा का संचार करती है.

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वहीं इस माह में जल देवता वरुण, सूर्य नारायण और भगवान विष्णु का पूजन और आराधना कर हम आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो सकते हैं. इस माह में धार्मिक यात्रा करना शुभ माना जाता है. स्कंद पुराण में आषाढ़ माह के महत्व का वर्णन करते हुए कहा गया है-

यथा मासानां ज्येष्टोऽसौ तपसां चैव वै महत्। तथैव चाषाढो मासो वै सर्वपापप्रणाशनः ।।
अर्थात – जिस प्रकार मासों में ज्येष्ठ श्रेष्ठ है और तपस्या में जो महान है, उसी प्रकार आषाढ़ माह सभी पापों का नाश करने वाला है.

आषाढ़ माह में कई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार आते हैं, जिनका अपना विशेष महत्व है :

मिथुन संक्रांति (15 जून) यह धर्म, आस्था

और आत्मशुद्धि का पर्व है. इस दिन स्नान, दान और जप करना शुभ है. यह पर्व जीवन में परोपकार और आत्मकल्याण का संदेश देता है. इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है. कुछ जगहों पर सिलबट्टे को भूदेवी मान उनकी पूजा होती है. पूर्वजों को श्रद्धांजलि भी दी जाती है. योगिनी एकादशी (21 जून): वर्ष का सबसे बड़ा दिन है. यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है, जो पापों से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है. इस दिन व्रत रखने से कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है. सुख-समृद्धि आता है. प्रदोष व्रत (23 जून) यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और उन्हें आरोग्य व दीर्घायु प्राप्त होती है. यह व्रत हर माह की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है.
आषाढ़ अमावस्या (25 जून) इस दिन स्नान-

दान और पितरों के तर्पण का विशेष महत्व है. यह अमावस्या किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि इसके बाद वर्षा ऋतु अपने चरम पर होती है और बुआई का कार्य शुरू होता है. इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा का विधान है.

आषाढ़ गुप्त नवरात्रि (26 जून)

यह नवरात्रि विशेष रूप से तांत्रिकों और साधकों के लिए महत्वपूर्ण है. दस महाविद्याओं की गुप्त रूप से पूजा-आराधना की जाती है, ताकि सिद्धि और शक्ति प्राप्त हो. सामान्य जन भी मनोकामना पूर्ति के लिए इन दिनों देवी की उपासना करते हैं.

(घटस्थापना मुहूर्त – प्रातः 05:00 बजे से प्रातः 06:32 बजे तक)

जगन्नाथ रथ यात्रा (27 जून):

ओडिसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की विशाल रथ यात्रा निकाली जायेगी. इस पवित्र पर्व में लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं. यह यात्रा भगवान के अपने भक्तों से मिलने का पर्व है. (द्वितीया तिथि- गुरुवार, 26 जून की दोपहर 01:24 बजे से 27 जून की सुबह 11:19 बजे तक)

देवशयनी एकादशी (6 जुलाई)

यह आषाढ़माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी है, जिसके बाद भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जायेंगे. इसी के साथ चातुर्मास का आरंभ होता है. इस दिन से विवाह, गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं.(एकादशी तिथि- शनिवार, 5 जुलाई को सायं 06:58 बजे से 6 जुलाई प्रातः 09:14 बजे तक.)

आषाढ़ पूर्णिमा (10 जुलाई)

इसे गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गुरुओं की पूजा-अर्चना की जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. यह दिन महर्षि वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संकलन किया था.

पूजन और आराधना

आषाढ़ माह में मुख्य रूप से जल तत्व से संबंधित देवताओं का पूजन और आराधना की जाती है.

जल देवता वरुण: वर्षा के देवता वरुण

देव का इस माह में विशेष रूप से स्मरण और पूजन करना चाहिए. धन प्राप्ति के मार्ग खुलते हैं. उनसे अच्छी वर्षा की कामना करते हुए संकल्प लें और ‘ॐ वरुणाय नमः’ मंत्र का जाप करें.
सूर्य देवता : आषाढ़ में सूर्य देवता की उपासना से ऊर्जावान बने रहेंगे. सूर्य देव के तेज से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है. प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देना और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ है. अर्घ्य देते समय ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ या ‘ॐ आदित्याय नमः’ मंत्र का जाप करें. रविवार के दिन व्रत रखना विशेष फलदायी है, भगवान विष्णु : देवशयनी एकादशी के कारण यह माह भगवान विष्णु को समर्पित है. भगवान विष्णु की पूजा, मंत्र जाप और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ संतान प्राप्ति व उनके लिए कल्याणकारी है.

आषाढ़ वर्षा ऋतु का प्रारंभिक काल है, जिसमें पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और वात-पित्त-कफ में असंतुलन होने की संभावना रहती है. अतः खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

क्या खाना चाहिए

हल्का और सुपाच्य भोजन, जैसे- खिचड़ी, दलिया, चावल, दाल. उबली सब्जियां, जैसे- लौकी, तोरी, टिंडा, परवल. ताजा मौसमी फल, जैसे- सेब, अनार, पपीता, नाशपाती, आम, जामुन, लीची. उबला हुआ पानी पीना स्वास्थ्यकर है. इसके अलावा, अदरक, तुलसी, काली मिर्च वाली चाय का सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है. वहीं भोजन में सौंफ, हींग और नींबू का सेवन करना उत्तम है.

क्या नहीं खाना चाहिए

तले-भुने और भारी खाद्य पदार्थ से बचें. बाहरी और बासी भोजन का सेवन न करें, क्योंकि इस मौसम में बैक्टीरिया और फंगस का प्रकोप बढ़ जाता है. बदलते मौसम में दही और पनीर जैसे ठंडे पदार्थों का सेवन कम करें, क्योंकि ये कफ बढ़ाते हैं. मूंगफली. तिल और उड़द दाल भी वात बढ़ाते हैं. बेल का सेवन बिल्कुल भी न करें. वहीं पत्तेदार सब्जियां खाने से बचें, क्योंकि वर्षा में इनमें कीड़े लगने की संभावना अधिक होती है और ये वात बढ़ाती हैं. साथ ही गरिष्ठ व मांसाहारी भोजन से भी परहेज करना चाहिए.

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