Bada Mangal 2025: तीसरा बड़ा मंगल पर तुलसी पूजा का विशेष योग, बरसेगी श्रीराम की असीम कृपा

Bada Mangal 2025: 27 मई 2025 को तीसरा बड़ा मंगल मनाया जाएगा जो कि ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती के साथ आ रहा है. इस दिन हनुमान जी की पूजा के साथ देवी तुलसी की आराधना करना बेहद शुभ माना जाता है. तुलसी माता को जल अर्पित कर दीपक जलाने और तुलसी चालीसा का पाठ करने से न सिर्फ प्रभु श्रीराम की कृपा मिलती है, बल्कि जीवन के दुख-दर्द भी समाप्त होने लगते हैं. इस दिन शनि देव से जुड़े विशेष उपाय करके उनके अशुभ प्रभावों से मुक्ति भी पाई जा सकती है.

By Samiksha Singh | May 26, 2025 6:02 PM
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Bada Mangal 2025: ज्येष्ठ महीने के मंगल बहुत खास माने जाते हैं. इन्हें बड़ा मंगल कहा जाता है, जो पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ हनुमान जी को समर्पित होते हैं. लेकिन इस साल का तीसरा बड़ा मंगल बेहद विशेष है क्योंकि यह शनि जयंती और ज्येष्ठ अमावस्या के साथ पड़ रहा है. इस दिन हनुमान जी के साथ-साथ देवी तुलसी की पूजा करने से भगवान श्रीराम की कृपा मिलती है और जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं.

Bada Mangal 2025 Date: कब है तीसरा बड़ा मंगल

इस साल तीसरा बड़ा मंगल 27 मई 2025 को मनाया जाएगा. यह दिन इसलिए और भी खास है क्योंकि इस दिन ज्येष्ठ अमावस्या और शनि जयंती भी पड़ रही है. ऐसा शुभ संयोग कम ही देखने को मिलता है. इस दिन सुबह स्नान करके लाल वस्त्र पहनें, हनुमान जी को लाल चोला, तुलसी की माला, और लड्डू अर्पित करें. फिर देवी तुलसी की पूजा करें. ऐसा करने से भगवान श्रीराम प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.

शनि देव से जुड़े उपाय

अगर आपकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही है, तो शनि जयंती का दिन बहुत लाभकारी हो सकता है. इस दिन आप ये उपाय करें:

  • पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
  • लोहे की कटोरी में सरसों का तेल लेकर शिवलिंग पर अर्पित करें.
  • ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: मंत्र का जाप करें.
  • काली वस्तुएं जैसे काले कपड़े, जामुन, तिल, काले जूते आदि दान करें.
  • शमी का पौधा लगाएं — यह शनि के दोषों से बचाता है.

इन उपायों से शनि के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है.

।। तुलसी चालीसा।।

श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय।

जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।

नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी।

दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।

विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी।

भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।

जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा।

करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।

कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा।

तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।

कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी।

वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।

श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई।

कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।

छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी।

तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।

औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता।

देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।

वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया।

नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।

नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी।

नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।

नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि।

नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।

नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि।

जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।

निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ।

करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।

शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं।

क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।

मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै।

जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।

बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा।

प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।

चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे।

करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।

पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की।

यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।

करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं।

है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।

तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी।

भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।

यह श्रीतुलसी चालीसा पाठ करे जो कोय।

गोविन्द सो फल पावही जो मन इच्छा होय।।

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