कब है बैसाखी 2025? जानें इस पावन पर्व की तारीख और महत्त्व

Baisakhi 2025 date: बैसाखी एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो पंजाब और उत्तर भारत में मनाया जाता है. यह फसल कटाई का उत्सव है, जिसे किसान नए साल और नई फसल के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाते हैं. इस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी, जिससे यह सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है.

By Shaurya Punj | April 8, 2025 8:53 AM
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Baisakhi 2025 Date: बैसाखी, जिसे वैसाखी के नाम से भी जाना जाता है, सिख धर्म के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है. यह न केवल फसलों के पकने का संकेत देता है, बल्कि वर्ष 1699 में गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित खालसा पंथ की भी स्मृति ताजा करता है. भारत में बैसाखी को बसंत ऋतु की शुरुआत के रूप में देखा जाता है. यह केवल एक उत्सव और आनंद का पर्व नहीं है, बल्कि एक धार्मिक अवसर है जब विश्वभर में स्थित सिख समुदाय खालसा पंथ की स्थापना करने वाले महान गुरु को श्रद्धांजलि अर्पित करता है. पारंपरिक रूप से, बैसाखी का पर्व फसल की कटाई और किसानों के लिए खुशी और उल्लास का प्रतीक होता है. इसे विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में धूमधाम से मनाया जाता है, जहां लोग चटक रंगों, स्वादिष्ट व्यंजनों, संगीत और नृत्य के माध्यम से अपनी खुशी का इजहार करते हैं.

बैसाखी का पर्व कब मनाया जाएगा?

बैसाखी का पर्व हर वर्ष मेष संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, यह आमतौर पर 13 या 14 अप्रैल को आता है. इस वर्ष, बैसाखी का पर्व 13 अप्रैल, 2025 को रविवार के दिन मनाया जाएगा. इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेगा.

बैसाखी का सांस्कृतिक महत्व

बैसाखी मुख्य रूप से नई फसल के आगमन की खुशी में मनाई जाती है. इसके अलावा, उत्तरी राज्यों जैसे उत्तराखंड, पंजाब, जम्मू, हिमाचल, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में लोग इसे बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं. भारत के अन्य कई हिस्सों में बैसाखी को भारतीय सौर नव वर्ष के रूप में भी माना जाता है.

बैसाखी का धार्मिक महत्व

बैसाखी का सिख धर्म में विशेष महत्व है. यह दिन 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का प्रतीक है. उन्होंने आनंदपुर साहिब में एक सभा का आयोजन किया, जिसमें सिखों को एक नई पहचान प्रदान की गई. खालसा पंथ की स्थापना सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने समुदाय को एकता, साहस और धार्मिक निष्ठा के बंधन में बांध दिया. इस अवसर पर सिख गुरुद्वारों को सजाया जाता है, विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं और नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है.

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