आर डी अग्रवाल प्रेमी
Bhakti Gyan: प्राचीन काल में भारतीय मनीषियों ने धर्म को वैज्ञानिक ढंग से समझने का प्रयत्न किया था. उन्होंने समझाया कि धर्म वह है, जिससे अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो –
यतो अभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः (कणाद, वैशेषिकसूत्र, 1.1.2) स धर्मः।
‘अभ्युदय’ से लौकिक उन्नति का तथा श्निः श्रेयस’ से पारलौकिक उन्नति एवं कल्याण का बोध होता है. अर्थात जीवन के ऐहिक और पारलौकिक दोनों पक्षों से धर्म को जोड़ा गया था. धर्म शब्द का अर्थ अत्यंत गहन और विशाल है. इसके अंतर्गत मानव जीवन के उच्चतम विकास के साधनों और नियमों का समावेश होता है.
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धर्म कोई उपासना पद्धति न होकर एक विराट और विलक्षण जीवन-पद्धति है. यह दिखावा नहीं, दर्शन है. यह प्रदर्शन नहीं, प्रयोग है. यह चिकित्सा है मनुष्य को आधि, व्याधि, उपाधि से मुक्त कर सार्थक जीवन तक पहुंचाने की. यह स्वयं द्वारा स्वयं की खोज है. धर्म, ज्ञान और आचरण की खिड़की खोलता है. धर्म, आदमी को पशुता से मानवता की ओर प्रेरित करता है. धर्म का सार जीवन में संयम का होना है.
भगवान को पाने के तीन रास्ते गीता में बताये गये हैं. इनमें पहला है- कर्म योग. दूसरा, ज्ञान और तीसरा, भक्ति योग. भगवान श्रीकृष्ण जब अर्जुन को इन तीनों तरीके के बारे में बताते हैं तब अर्जुन कहते हैं कि- वे इन तीनों रास्तों पर नहीं चल पायेंगे.
सत्य की खोज इसलिए आवश्यक है, क्योंकि सत्य ही जीवन है. आप सत्य की खोज की आवश्यकता महसूस नहीं करते, तो आप जीवन से ही विमुख हैं. मानव और पशु में भोग के विषय में तो समानता दिखाई देती है, लेकिन ज्ञान के विषय में वह पशु से बेहतर है.
ज्ञान और भक्ति जीवन को सुपथगामी बनाकर श्रेष्ठ मार्ग की ओर अग्रसित करती है. यदि किसी मनुष्य के जीवन में ज्ञान-भक्ति नहीं है, तो फिर निश्चित समझिए वो कुपथगामी है और जो कुपथगामी है, वही तो आसुरी प्रवृत्ति का भी है. जिस मनुष्य के जीवन में भक्ति नहीं तो फिर उसी मनुष्य का जीवन हिरण्यकशिपु की तरह असुरत्व प्रधान भी बन जाता है.
एक युवक प्रेम रावत जी के पास आया और पूछा, ‘मैं शांति की तलाश में हूं, कृपया मुझे शांति पाने का तरीका बताएं,’ प्रेम रावत जी बोले, ‘तुम्हें क्या लगता है कि शांति कहां मिलेगी?’ युवक ने कहा, ‘शायद पहाड़ों में, किसी आश्रम में या फिर किसी गुरु के पास.’ प्रेम रावत जी ने पास रखे एक गिलास में पानी डाला और उसे दिया. फिर पूछा, ‘क्या तुम्हें प्यास लगी थी?’ युवक ने का, ‘हां, बहुत प्यास लगी थी.’
‘और जब तुमने पानी पिया, तो प्यास बुझी?’ वह बोला, ‘हां, पूरी तरह से.
‘देखो, प्यास तुम्हारी थी, पानी तुम्हारे पास ही था, और उसे पीने का काम भी तुम्हें ही करना पड़ा. इसी तरह शांति बाहर नहीं, बल्कि तुम्हारे अंदर है. तुम्हें बस सही तरीके से उसे अनुभव करना होगा. इसके लिए आत्म-जागरूकता जरूरी है. जब तुम अपने भीतर ध्यान से देखोगे, अपनी सांसों, अपने अस्तित्व को समझोगे, तो तुम्हें वही शांति मिलेगी, जिसे तुम अब तक बाहर खोज रहे हो.’
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