Last Rites of Children: हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार को आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है. हालांकि, जब किसी 18 वर्ष से कम उम्र के बालक या बालिका का निधन होता है, तो उनकी अंतिम संस्कार विधि वयस्कों से कुछ भिन्न होती है. इसका कारण यह है कि धार्मिक दृष्टिकोण से छोटे बच्चों को कर्म बंधन से अछूता और निर्दोष माना जाता है. उनकी आत्मा को शुद्ध और निष्पाप समझा जाता है, इसलिए उनके लिए सामान्य कर्मकांड की आवश्यकता नहीं मानी जाती.
धार्मिक मान्यता और बाल मृत्यु
शास्त्रों के अनुसार, 7 वर्ष तक के बच्चे “अपराध रहित” होते हैं. वे अभी संसारिक पाप-पुण्य के बंधन में पूरी तरह नहीं जुड़े होते, इसलिए उनके निधन पर श्राद्ध, पिंडदान, तेरहवीं आदि जैसे कर्मकांड नहीं किए जाते. उन्हें सीधा मोक्ष प्राप्त होता है.
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अंतिम संस्कार की प्रक्रिया
- 7 वर्ष तक के बच्चों को आमतौर पर जल समाधि या भूमि समाधि दी जाती है.
- 8 से 18 वर्ष तक के किशोरों का दाह संस्कार किया जाता है, लेकिन विधियां सरल और सीमित होती हैं. पूरी धार्मिक प्रक्रियाएं नहीं की जातीं.
मुखाग्नि कौन देता है?
वयस्कों की तरह यहाँ भी मुखाग्नि परिवार का कोई पुरुष सदस्य देता है. आमतौर पर पिता, बड़ा भाई या चाचा यह कार्य करते हैं. यदि बालक बहुत छोटा हो, तो कई बार यह कार्य पंडित या परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य को सौंपा जाता है.
पिंडदान और तेरहवीं क्यों नहीं होती?
चूंकि बच्चों को पितृलोक का अधिकारी नहीं माना जाता, इसलिए उनके लिए श्राद्ध, पिंडदान, तेरहवीं जैसी परंपराएं नहीं निभाई जातीं. यह माना जाता है कि ऐसी आत्माएं बिना किसी कर्म फल के सीधे ईश्वर में लीन हो जाती हैं.
पूजन और संस्कार की विधि
- शव को गंगाजल से स्नान कराया जाता है.
- चंदन, फूल, दूध, शहद से पूजन कर अंतिम दर्शन किए जाते हैं.
- शांति पाठ और मंत्र जाप के माध्यम से आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना होती है.
- कुछ परंपराओं में बालक को बाल गोपाल या कृष्ण रूप मानकर पूजन किया जाता है.
छोटे बच्चों का अंतिम संस्कार सरल, भावपूर्ण और कम कर्मकांड युक्त होता है. यह प्रक्रिया धर्म, परंपरा और स्थानीय रीति-रिवाजों पर आधारित होती है, जिसका उद्देश्य मासूम आत्मा को सम्मानपूर्वक विदाई देना होता है. यह श्रद्धा और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है, न कि केवल धार्मिक अनुष्ठान.