सुबह से रात तक चला अनुष्ठान, हुआ नेत्रदान
Jagannath Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र 15 दिनों के एकांतवास के बाद गुरुवार को बाहर आये. जैसे ही भगवान का पट खोला गया, मंदिर परिसर में उपस्थित भक्तों ने हाथ जोड़कर जय जगन्नाथ की गूंज के साथ उन्हें प्रणाम किया. इस दौरान श्रद्धालुओं की खुशी देखते ही बन रही थी. महिलाओं और पुरुषों के लिए दर्शन के लिए अलग-अलग कतारों की व्यवस्था की गयी थी. सुबह भगवान की नित्य पूजा-अर्चना स्नान मंडप में की गयी. इसके बाद उन्हें हलुआ का भोग अर्पित किया गया. दोपहर 12 बजे अन्न भोग अर्पित करने के बाद पट बंद कर दिया गया. दोपहर तीन बजे के बाद पट खुला और भक्तों ने राधा-कृष्ण सहित अन्य देवी-देवताओं का दर्शन किया. शाम चार बजे भगवान को पुनः स्नान मंडप में लाकर नेत्रदान का अनुष्ठान संपन्न हुआ. पूजा-अर्चना, धूप-आरती, मालपुआ समेत विविध भोग अर्पित किये गये. इसके बाद 108 दीपों से मंगल आरती की गयी और भक्तों के बीच प्रसाद वितरित किया गया. रात नौ बजे भगवान को अंतिम भोग अर्पण कर मंदिर का पट बंद कर दिया गया.
रथयात्रा की ऐतिहासिक झलक राजपरिवारों की पुरानी परंपरा आज भी जीवंत
रातू. छोटानागपुर की ऐतिहासिक रथयात्रा रातू किला स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर से आज निकाली जायेगी. बुधवार को मंदिर में भगवान श्रीजगन्नाथ का “नेत्रदान संस्कार” राजपुरोहित भोला नाथ मिश्रा व करुणा मिश्रा के सान्निध्य में संपन्न हुआ. इस परंपरा की शुरुआत वर्ष 1899 में रातू के 60वें महाराजा प्रताप उदय नाथ शाहदेव द्वारा की गयी थी, जिन्हें स्वप्न में भगवान श्रीजगन्नाथ के दर्शन हुए थे. उन्होंने पूरी से कारीगर बुलाकर नीम की लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियां बनवाकर मंदिर की स्थापना की. रथयात्रा मंदिर से 500 मीटर दूर मौसीबाड़ी (शिव मंदिर) तक जाती है और उसी दिन वापस लौटती है. रथ पर राजपरिवार के सदस्य भी सवार होते हैं.
जरियागढ़ में चढ़ाते हैं कटहल का महाप्रसाद
कर्रा प्रखंड स्थित जरियागढ़ की परंपरागत रथयात्रा आज भी राजपरिवार और ग्रामीणों के सामूहिक प्रयास से पारंपरिक तरीके से निकाली जाती है. यहां दो रथ यात्रा निकाली जाती है. एक राजपरिवार की ओर से और दूसरी ग्रामीणों द्वारा निकाली जाती है. रथ यात्रा की शुरुआत राजपरिवार द्वारा झाडू लगाकर मार्ग शुद्धिकरण से होती है. भगवान को मौसीबाड़ी ले जाकर विशेष भोग अर्पित किया जाता है. जिसमें कटहल का प्रसाद विशेष रूप से तैयार किया जाता है. रथयात्रा में ढोल-मृदंग, घंटे और जयकारों के साथ नगर भ्रमण कर भगवान को पुनः मंदिर में स्थापित किया जाता है.
सीआरपीएफ 94 बटालियन निकालती है रथयात्रा
खूंटी जिले में रथयात्रा का आयोजन वर्ष 2011 से सीआरपीएफ 94 बटालियन द्वारा किया जा रहा है. रथयात्रा से पूर्व बटालियन परिसर में विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें अधिकारी, जवान और स्थानीय लोग सम्मिलित होते हैं. इस परंपरा की नींव तब पड़ी जब सीआरपीएफ 94 बटालियन की स्थापना वर्ष 1988 में ओडिशा के भुवनेश्वर में हुई थी. उस वर्ष 1988 में पहली बार रथयात्रा का आयोजन हुआ था. तब से यह धार्मिक परंपरा बटालियन के साथ चली आ रही है. सीआरपीएफ के जवान हर वर्ष धूमधाम से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालते हैं और उत्सव मनाते हैं.
बड़ाइक परिवार को बढ़ा रहा है आगे
चोरटया, तोरपा के बढ़ाइक टोली स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाने वाली रथयात्रा की परंपरा लगभग 200 वर्ष पुरानी है. नेतृत्व क्षेत्र के पुराने जमीदार बहाइक परिवार की ओर से किया जाता है. परिवार के सदस्य विजय सिंह बडाइक बताते हैं कि पहले सगड नाड़ी को रथ बनाकर यात्रा करायी जाती थी. वर्तमान में भहत्य मंदिर निर्माण कार्य प्रगति पर है. मूर्तियों की पूजा मुरहू के बारला गांव निवासी श्याम सुंदर कार करते हैं, जिनके पूर्वजों द्वारा यह सेवा करीब दो शताब्दियों से की जाती रही है. इधर, कोटेगसेरा गांव में 2013 से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जा रही है. यहां मंदिर में प्रतिदिन पांच बार भोग चढ़ाया जाता है.
परंपराइटकी में 250 वर्षों रथयात्रा की परंपरा
इटकी, रांची जिले के इटकी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर रथयात्रा का इतिहास करीष वर्ष पुराना है. यह परंपरा जम परिवार की पांचवी पीढ़ी द्वारा अब भी निभायी जा रही है. स रामेकर नाथ शाहदेव ने बताय उनके पूर्वज मंगलनाश साय यात्रा के बाद यहां मिट्टी का मा बनवाकर रथयात्रा की शुरु थी. बाद में उनकी दादी लक्ष्म के प्रयासों से वर्ष 1945 में एक मंदिर का निर्माण शुरू हुआ 1947 में मूर्तियों की स्थापना गयी. मंदिर की दो गुम्बज है ऊंचाई लगभग 80 फीट है.
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