– सच्चा प्रेम मांगता नहीं, केवल देता है
जय किशोरी जी कहती हैं, “जहां मांग है, वहां व्यापार है — वहां प्रेम नहीं” सच्चा प्रेम वह है जो सामने वाले से कुछ पाने की अपेक्षा नहीं रखता. वह त्याग और समर्पण से भरा होता है. प्रेम केवल तब सच्चा कहलाता है जब वह बिना शर्तों के किया जाए.
– प्रेम में ईगो नहीं होता, केवल अपनापन होता है
जय किशोरी जी के अनुसार, जब प्रेम में अहंकार आ जाता है, तब वह टूटने लगता है. सच्चे प्रेम में “मैं” नहीं होता, बल्कि “हम” होता है. जो प्रेम विनम्रता और सहनशीलता से जुड़ा हो, वही ईश्वर को भी प्रिय होता है.
– भगवान से प्रेम ही सच्चे प्रेम की पहली सीढ़ी है
वह बताती हैं कि सच्चा प्रेम शुरू होता है ईश्वर से जुड़ाव से. जब हम भगवान श्रीकृष्ण या राधा रानी से प्रेम करते हैं, तो हमारी आत्मा प्रेम करना सीखती है. भक्ति में किया गया प्रेम हमें सांसारिक रिश्तों में भी सच्चा बनाता है.
– प्रेम का आधार विश्वास और क्षमा है
सच्चे प्रेम में सबसे बड़ा गुण होता है – विश्वास और क्षमा. जय किशोरी जी कहती हैं, “गलती तो सभी से होती है, लेकिन जो प्रेम में माफ करना सीखता है, वही ईश्वर के करीब होता है” यह गुण रिश्तों को टूटने से बचाते हैं.
– प्रेम सीमाओं में नहीं, भावनाओं में जीता है
सच्चा प्रेम जाति, धर्म, समय, दूरी — किसी सीमा में नहीं बंधता. जय किशोरी जी इसे भावनाओं की उन्नत अवस्था मानती हैं.जहां प्रेम होता है, वहां दूरी भी निकटता का अनुभव देती है.
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जय किशोरी जी की दृष्टि में प्रेम कोई साधारण भावना नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धता और ईश्वर से जुड़ाव का जरिया है. जब प्रेम निष्कलंक, निरपेक्ष और निस्वार्थ होता है, तब वह न केवल इंसानों को जोड़ता है, बल्कि आत्मा को भी शांति देता है.