Lathmar Holi 2025: भारत में होली का पर्व अत्यंत उल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जाता है. प्रत्येक राज्य में इसे अपने विशेष तरीके से मनाने की परंपरा है. कहीं लट्ठमार होली का आयोजन होता है, तो कहीं फूलों और अबीर के साथ इसे मनाया जाता है. कुछ स्थानों पर मसान की होली का विशेष महत्व है, जबकि अन्य जगहों पर इसे रंग पंचमी के रूप में मनाने की परंपरा है. बरसाना में लट्ठमार होली का विशेष स्थान है, और यह उत्सव पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. अनेक विदेशी पर्यटक भी इस अद्वितीय अनुभव का हिस्सा बनने के लिए यहां आते हैं. मथुरा की होली तो पूरे देश में सबसे अधिक प्रसिद्ध है, जहां लोगों में एक अलग ही रौनक देखने को मिलती है.
आपकी जानकारी के लिए यह बताना आवश्यक है कि होली के अवसर पर मथुरा में लड्डू मार होली, लट्ठमार होली और रंगभरी होली जैसे विभिन्न प्रकार के उत्सव मनाए जाते हैं. इन समारोहों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं. क्या आप जानते हैं कि लट्ठमार होली की परंपरा की उत्पत्ति कैसे हुई? यदि नहीं, तो आइए हम आपको इस परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान करें.
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लट्ठमार होली कब मनाई जाती है?
ब्रज में होली का पर्व लगभग 40 दिनों तक मनाया जाता है, किंतु लट्ठमार होली की विशेषता अद्वितीय होती है. फाल्गुन मास की नवमी तिथि 7 मार्च को प्रातः 9:18 बजे से प्रारंभ होगी और इसका समापन 8 मार्च को प्रातः 8:16 बजे होगा. इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार 8 मार्च को लट्ठमार होली का आयोजन किया जाएगा.
इस प्रकार हुई लट्ठमार होली की शुरुआत
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान कृष्ण राधा रानी से मिलने बरसाना आए, जहाँ उन्होंने राधा जी और उनकी सखियों को चिढ़ाना शुरू किया. उनके इस व्यवहार को देखकर राधा जी और उनकी सहेलियों ने कृष्ण जी और ग्वालों को लाठी से पीटते हुए दौड़ाना शुरू कर दिया. इस प्रकार उन्होंने सभी को एक महत्वपूर्ण पाठ सिखाया. ऐसी मान्यता है कि तभी से बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली की परंपरा की शुरुआत हुई.
लट्ठमार होली क्यों है विशेष
हर वर्ष होली के पहले मथुरा और बरसाने के गांवों में लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता है. इस उत्सव में नंदगांव के पुरुष (हुरियारे) और बरसाने की महिलाएं (हुरियारिन) भाग लेते हैं. पुरुष ढाल लेकर आते हैं, जबकि महिलाएं लाठियों से उन पर प्रहार करती हैं. इस दौरान विशेष ब्रज गीत गाए जाते हैं और चारों ओर रंगों की छटा बिखरती है. इस खास अवसर पर भांग और ठंडाई का आनंद लिया जाता है. पूरे गांव में कीर्तन मंडलियां घूमती हैं.