Mahavatar Babaji Memorial Day: महावतार बाबाजी—अनन्तकाल तक प्रेरणा प्रदान करने वाले सन्त

Mahavatar Babaji Memorial Day: महावतार बाबाजी, अमर योगी और क्रियायोग के पुनःप्रवर्तक, आज भी संसारभर के साधकों को अपनी अदृश्य उपस्थिति से प्रेरित करते हैं. उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानें उनके दिव्य जीवन, शिक्षाओं और आध्यात्मिक विरासत की कालजयी प्रेरणा को.

By Shaurya Punj | July 25, 2025 4:17 PM
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Mahavatar Babaji Memorial Day: महान् गुरु लाहिड़ी महाशय का यह प्रसिद्ध कथन — “जब भी कोई श्रद्धा के साथ बाबाजी का नाम लेता है, उसे तत्क्षण आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होता है” — श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा लिखित ‘योगी कथामृत’ में उल्लेखित है और यह महावतार बाबाजी की पारलौकिक उपस्थिति तथा उनके सतत आशीर्वाद का सशक्त प्रमाण है. यह उद्धरण बाबाजी की दिव्यता, उनके अमरत्व और उनके अनुयायियों के जीवन में उनके स्थायी प्रभाव को दर्शाता है.

लाहिड़ी महाशय के प्रमुख शिष्य, स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने भी स्वीकार किया कि बाबाजी की आध्यात्मिक अवस्था सामान्य मानव की समझ से परे है. फिर भी, जो व्यक्ति ईमानदारी से इन महान् गुरुओं की शिक्षाओं के साथ समरस होने का प्रयास करता है, उसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अमूल्य लाभ प्राप्त होता है.

Mahavatar Babaji Memorial Day: असीम कृपा के सागर महावतार बाबाजी के बारे में जानें

हर वर्ष 25 जुलाई को, भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) और विश्वभर में सेल्फ-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ) के साधकों द्वारा अमर योगी महावतार बाबाजी का स्मृति दिवस श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है. बाबाजी, लाहिड़ी महाशय, श्रीयुक्तेश्वर गिरि और परमहंस योगानन्दजी ने क्रियायोग के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक मार्ग को विश्व को प्रदान किया — जो आज भी आत्मोत्थान का एक सशक्त माध्यम बना हुआ है.

बाबाजी ने आधुनिक युग में क्रियायोग को पश्चिम में फैलाने के लिए विशेष रूप से योगानन्दजी को चुना. लाहिड़ी महाशय को क्रियायोग की दीक्षा प्रदान करते समय उन्होंने यह भी अनुमति दी कि यह प्रविधि केवल संन्यासियों तक सीमित न रहे, बल्कि सभी सच्चे जिज्ञासुओं को उपलब्ध कराई जाए. ‘योगी कथामृत’ इस दिव्य गुरु-शिष्य संबंध का मार्मिक चित्रण करती है — एक प्रेम जो जन्म-जन्मांतरों तक बना रहता है.

हिमालय की एक अविस्मरणीय भेंट में बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय से कहा था, “अपने बच्चे की रक्षा करने वाले पक्षी की भाँति मैं अंधकार, तूफान, उथल-पुथल और प्रकाश में सतत तुम्हारे पीछे-पीछे चलता रहा.” इस पर लाहिड़ी महाशय ने भावविभोर होकर उत्तर दिया, “मेरे गुरुदेव, मेरे पास कहने के लिए और क्या हो सकता है? कहीं किसी ने कभी ऐसे अमर प्रेम के बारे में सुना भी है?”

यह संबंध न केवल भावनात्मक है, बल्कि आत्मिक और सार्वभौमिक भी है — एक ऐसा बंधन जो गुरु की कृपा से साधक के जीवन को दिव्यता की ओर ले जाता है. परमहंस योगानन्द को अपने गुरु, श्रीयुक्तेश्वरजी और उनके माध्यम से बाबाजी की दी हुई क्रियायोग की जीवनशैली विरासत में प्राप्त हुई, जो आत्मा के विकास और मोक्ष का मार्ग है.

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया इन शिक्षाओं को आदर्श जीवन पाठमाला के माध्यम से सभी साधकों तक पहुँचाती है. यह पाठमाला मुद्रित और डिजिटल दोनों रूपों में उपलब्ध है, जिससे लाखों लोग ध्यान की प्रारंभिक और उच्च प्रविधियाँ सीखकर अपने जीवन में आध्यात्मिक प्रगति का अनुभव कर रहे हैं. भारतभर में वाईएसएस संन्यासियों द्वारा आयोजित साधना संगम और विशेष कक्षाओं के माध्यम से भी यह शिक्षाएं विस्तार पाती हैं.

महावतार बाबाजी के एक अनमोल वचन में कहा गया है:
“संसार में रहकर भी जो योगी व्यक्तिगत स्वार्थ और आसक्तियों को त्याग कर पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वाह करता है, वह ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के सुनिश्चित मार्ग पर ही चल रहा होता है.”

‘योगी कथामृत’ से यह महाशक्ति-संपन्न आश्वासन भी प्राप्त होता है:
“बाबाजी ने सभी सच्चे क्रियायोगियों की लक्ष्यप्राप्ति के पथ पर रक्षा करने का एवं उनका मार्गदर्शन करने का वचन दिया हुआ है.”

अधिक जानकारी के लिए: yssofindia.org
लेखक : विवेक अत्रे

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