– धर्म और अध्यात्म का संगम
मिथुन संक्रांति का दिन सूर्य देव की उपासना के लिए विशेष होता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन किया गया स्नान, दान और जप सहस्त्रगुणा फल प्रदान करता है. इसे ‘पुण्यकाल’ कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है और मोक्ष के मार्ग की ओर अग्रसर होता है.
– दान-पुण्य का विशेष महत्व
इस दिन तिल, वस्त्र, घी, शहद, स्वर्ण, और अन्न आदि का दान विशेष पुण्यदायी माना गया है. गरीब, ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देने से व्यक्ति को पाप से मुक्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन गौदान, अन्नदान, और जल दान का भी महत्व वर्णित है.
– सूर्य देव की आराधना
मिथुन संक्रांति पर सूर्य नारायण की पूजा अत्यंत लाभकारी होती है. सूर्य को जल अर्पित करना, आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करना और ‘ओम सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करने से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक बल की प्राप्ति होती है. यह दिन रोगों से मुक्ति और तेज वृद्धि के लिए उपयुक्त माना गया है.
– तीर्थ स्नान का महत्व
इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा आदि पवित्र नदियों में स्नान करने का अत्यंत महत्व है. मान्यता है कि मिथुन संक्रांति के पुण्यकाल में गंगाजल में स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति सात जन्मों तक मोक्ष की दिशा में अग्रसर रहता है.
– संकल्प और व्रत का योग
मिथुन संक्रांति के दिन कई श्रद्धालु उपवास रखते हैं और संकल्प लेते हैं कि वे वर्षभर धर्मपथ पर चलेंगे. व्रत रखने से आत्मबल और संयम की शक्ति बढ़ती है, जो व्यक्ति को सांसारिक मोह से दूर करके आध्यात्मिक चेतना की ओर ले जाती है.
यह भी पढ़ें : Tulsi Plant Benefits : घर में तुलसी का पौधा लगाने के धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ
यह भी पढ़ें : Astro Tips For Married Women: शादीशुदा महिलाओं को ध्यान में रखनी चाहिए ये बातें, वैवाहिक रिश्ते के लिए है शुभ
यह भी पढ़ें : Kitchen Astrology: इन रंगों से सजाएं रसोईघर, मिलेगा सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा
मिथुन संक्रांति केवल एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि धर्म, आस्था और आत्मशुद्धि का पर्व है. यह जीवन में संतुलन, परोपकार और आत्मकल्याण का संदेश देता है.