Nirjala Ekadashi 2025 आज, इस विधि से करें श्री विष्णु की पूजा
Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी 2025, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की तिथि में 6 जून को मनाई जाएगी. यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसमें अन्न-जल का पूर्ण त्याग किया जाता है. इसे सबसे कठिन लेकिन अत्यंत फलदायक व्रत माना जाता है, जो सभी एकादशियों के समान पुण्य प्रदान करता है.
By Shaurya Punj | June 6, 2025 6:28 AM
Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आती है. इस वर्ष यह व्रत 06 जून 2025, शुक्रवार को मनाया जा रहा है. यह एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, जिनकी पूजा इस दिन विधिपूर्वक की जाती है. नाम के अनुसार, निर्जला एकादशी में अन्न और जल दोनों का परित्याग किया जाता है, इसलिए इसे सबसे कठिन व्रतों में गिना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को रखने से पूरे 24 एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है. इस वर्ष निर्जला एकादशी पर शुभ रवि योग का संयोग भी बन रहा है. जानिए निर्जला एकादशी की पूजा विधि.
निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि की शुरुआत 6 जून को मध्यरात्रि 2:15 बजे से होती है और यह 7 जून को सुबह 4:47 बजे तक चलती है. उदय तिथि को ध्यान में रखते हुए, इस वर्ष निर्जला एकादशी व्रत 6 जून, शुक्रवार के दिन रखा जा रहा है.
निर्जला एकादशी पूजा विधि
निर्जला एकादशी की पूजा विधि सरल लेकिन श्रद्धा और नियमों के साथ निभानी चाहिए. इस दिन व्रती पूरे दिन अन्न और जल का परहेज करते हैं. सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूजा के लिए साफ-सुथरा स्थान चुनें. सबसे पहले भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा व वंदना करें.
पूजा के दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ नमो नारायणाय’ जैसे मंत्रों का जाप करें. फल, फूल, कुमकुम, अक्षत (चावल) और तुलसी के पत्तों से भगवान की आराधना करें. ध्यान रखें कि निर्जला एकादशी पर जल का सेवन वर्जित होता है, इसलिए पूजा के दौरान भी जल न पीएं.
दिनभर भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें या विष्णु स्तुति का पाठ करें. शाम को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आरती करें. व्रत के अंत में ब्राह्मणों को भोजन करवाना शुभ माना जाता है, जिससे व्रत का फल अधिक मिलता है.
निर्जला एकादशी व्रत को पूर्ण श्रद्धा और संयम के साथ रखना चाहिए, क्योंकि यह सबसे कठिन व्रतों में से एक है और इसे करने से सभी एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है.