Nirjala Ekadashi 2025 को क्यों कहते हैं भीमसेनी एकादशी, जानिए पौराणिक कहानी

Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसका संबंध महाभारत के महान योद्धा भीमसेन से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि भीम ने पूरे वर्ष में केवल यही एक एकादशी का व्रत रखा था, जिससे उन्हें सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त हुआ.

By Shaurya Punj | June 6, 2025 9:30 AM
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Nirjala Ekadashi Vrat 2025:हिंदू धर्म में व्रत-उपवास का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन निर्जला एकादशी को इन सभी में सबसे पवित्र और कठिन माना जाता है. वर्षभर में कुल 24 एकादशियां आती हैं, पर मान्यता है कि यदि कोई श्रद्धालु केवल निर्जला एकादशी का व्रत पूरे नियम और आस्था से करता है, तो उसे सभी एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होता है. यही कारण है कि भक्तगण इस व्रत की प्रतीक्षा पूरे साल करते हैं. यह व्रत पुराने पापों से मुक्ति और मोक्ष की ओर ले जाने वाला माना जाता है.

क्यों कहा जाता है इसे भीमसेनी एकादशी?

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. इसके पीछे एक दिलचस्प पौराणिक कथा है. महाभारत काल में जब ऋषि वेदव्यास ने पांडवों को एकादशी व्रत की महत्ता बताई, तो सभी पांडवों ने इसे रखने का संकल्प लिया. लेकिन भीमसेन ने कहा कि वह अधिक भोजन करने वाला है और उपवास रखना उसके लिए कठिन है.

Nirjala Ekadashi 2025 के कठिन व्रत से मिलता है सभी एकादशियों का फल

भीमसेन व्रत का पुण्य तो पाना चाहते थे, लेकिन बिना खाए-पिए रहना उनके लिए असंभव था. तब ऋषि वेदव्यास ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत के बारे में बताया, जिसमें अन्न और जल दोनों का त्याग किया जाता है, और इसका फल सभी एकादशियों के बराबर होता है.

तप, संयम और पुण्य का संगम

वेदव्यासजी ने समझाया कि ज्येष्ठ माह की भीषण गर्मी में बिना जल के उपवास करना आत्मसंयम और तप की चरम सीमा है. यह केवल शारीरिक नहीं, मानसिक तप भी है. भीमसेन ने इस कठिन व्रत को पूरे नियम से निभाया, और तभी से यह व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ.

यह व्रत क्यों रखें?

  • एक दिन में सभी 24 एकादशियों का पुण्य
  • पूर्व जन्मों और वर्तमान के पापों से मुक्ति
  • आत्मसंयम और भक्ति का अनुभव
  • मोक्ष और भगवान विष्णु की विशेष कृपा
  • यदि किसी कारणवश आप पूरे वर्ष की एकादशियों का पालन नहीं कर पाते हैं, तो केवल निर्जला एकादशी व्रत से भी आप सम्पूर्ण फल पा सकते हैं. यह व्रत केवल एक नियम नहीं, बल्कि आस्था, तप, त्याग और भक्ति का प्रतीक है, जो जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है.

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ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
8080426594/9545290847

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