– भक्ति को दिखावे से मुक्त रखें, सच्चे मन से स्मरण करें
प्रेमानंद जी कहते हैं कि राधा रानी की भक्ति में दिखावा नहीं, दिल की सच्चाई होनी चाहिए. न कोई विशेष माला चाहिए, न ही कोई बड़ा आयोजन. सिर्फ मन से “राधे-राधे” कहने मात्र से राधा रानी प्रसन्न होती हैं. हर दिन कम से कम 108 बार “राधे राधे” नाम का जाप करें.
– ब्रज भाव को अपनाएं, भक्ति को जीवन में जीएं
राधा रानी की भक्ति ब्रज भाव से जुड़ी है. इसका अर्थ है – सेवा, समर्पण और स्नेह. प्रेमानंद जी सिखाते हैं कि जैसे ब्रजवासी भगवान को अपना परिवार मानते थे, वैसे ही भक्त को भी राधा रानी को अपने जीवन की मां , सखी, शक्ति मानकर भक्ति करनी चाहिए.
– सेवा भाव को बढ़ाएं – छोटी-छोटी मदद को भी भक्ति मानें
राधा रानी की कृपा उन पर होती है जो सेवा में लीन रहते हैं. प्रेमानंद जी समझाते हैं कि किसी भूखे को भोजन कराना, किसी वृद्ध की सहायता करना भी राधा रानी की भक्ति है. सेवा करने से हृदय को दया और प्रेम मिलता है, जो राधा नाम में प्रवेश की पहली सीढ़ी है.
– वृंदावन का स्मरण और सत्संग में जुड़ाव रखें
राधा रानी का वास वृंदावन में माना जाता है. प्रेमानंद जी कहते हैं – “शरीर भले न जाए, पर मन तो वृंदावन भेजो” प्रतिदिन कुछ पल वृंदावन का ध्यान करें, भजन सुनें या पढ़ें. साथ ही सत्संग (जैसे प्रेमानंद जी के प्रवचन) से जुड़ें, जिससे मन और आत्मा शुद्ध हो.
– निष्काम प्रेम को अपनाएं, फल की इच्छा न रखें
राधा रानी की भक्ति निष्काम होती है, उसमें कोई सौदा नहीं। प्रेमानंद जी के अनुसार, “जो मांगे वो व्यापारी, जो दे वही हमारा प्यारा” इसलिए प्रार्थना करते समय कुछ मांगने के बजाय, बस प्रेम प्रकट करें. यही सच्ची भक्ति है.
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प्रेमानंद जी महाराज का भक्ति मार्ग सरल, भावपूर्ण और प्रेममयी है. राधा रानी की भक्ति पाने के लिए किसी विशेष तंत्र की आवश्यकता नहीं, बल्कि एक पवित्र, निष्कलंक मन और सेवा भाव की जरूरत होती है.