– जब मन सांसारिक मोह से ऊपर उठे
प्रेमानंद जी कहते हैं कि सच्चा प्यार तब होता है जब व्यक्ति का मन भौतिक आकर्षण, रूप, रंग और देह की चाह से ऊपर उठ जाता है. जब व्यक्ति किसी के व्यक्तित्व, गुण और आत्मिक ऊर्जा को देखकर आकर्षित होता है, तब वह प्रेम सच्चा माना जाता है. यह प्रेम केवल पाने की लालसा नहीं, बल्कि देने की भावना से भरपूर होता है.
– जब प्रेम में ईश्वर की झलक दिखाई दे
सच्चा प्यार वही होता है, जिसमें हमें अपने प्रिय में परमात्मा की झलक दिखाई दे. प्रेमानंद जी के अनुसार, जब किसी के साथ जुड़कर व्यक्ति ईश्वर को याद करने लगे, भक्ति करने लगे, और उसका मन निर्मल हो जाए, तब वह प्रेम आत्मिक होता है. ऐसा प्रेम व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है.
– जब प्रेम से सेवा की भावना जागे
प्रेम का सही वक्त तब होता है जब आप अपने प्रिय की सेवा करना चाहते हैं, बिना किसी स्वार्थ के. यह सेवा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक स्तर पर होती है. प्रेमानंद जी कहते हैं कि सेवा से बड़ा कोई प्रेम नहीं होता.
– जब अहंकार और स्वार्थ समाप्त हो जाए
सच्चे प्रेम की पहचान यह है कि उसमें ‘मैं’ और ‘मेरा’ का भाव नहीं होता. जब व्यक्ति अपने प्रिय के लिए त्याग करने को तैयार हो, अपने स्वार्थ को पीछे छोड़ दे और केवल उसके सुख में ही अपना सुख देखे – तब समझिए कि वह सच्चा प्रेम है.
– जब प्रेम भक्ति का मार्ग बन जाए
प्रेमानंद जी कहते हैं कि सच्चा प्रेम वह है जो भक्तिमार्ग में सहायक हो. जब किसी से प्रेम करके व्यक्ति ईश्वर के और निकट आ जाए, भजन, कीर्तन और साधना में रुचि बढ़ जाए, तब वह प्रेम आत्मा को शुद्ध करता है और ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम बनता है.
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प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, सच्चा प्रेम तभी होता है जब उसमें आत्मा का मेल हो, भक्ति की भावना हो, सेवा और त्याग हो. ऐसा प्रेम न केवल जीवन को सुंदर बनाता है, बल्कि व्यक्ति को ईश्वर के साक्षात्कार तक पहुंचा सकता है.