अपने जीवन से सभी को मोह होता है, परंतु महर्षि दधीचि ने त्रिलोक की रक्षा के लिए अपने शरीर का मोह किये बिना अपनी सारी अस्थियां दान में दे डालीं. इस त्याग ने महर्षि दधीचि को अमर बना दिया.
एक बार वृत्तासुर नामक असुर ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया और वहां विध्वंस मचाने लगा. उसने देवलोक में ऐसा उत्पात मचाया कि सारे देवता त्राहि-त्राहि कर उठे. इंद्रदेव ने देवलोक को बचाने का पूरा प्रयास किया, परंतु उनके वज्र के प्रहार से वृत्तासुर का कुछ नहीं हुआ. आसुरी शक्ति के आगे इंद्रदेव की एक न चली. और वृत्तासुर ने इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया. भयभीत इंद्रदेव देवलोग से अपने प्राण बचा विष्णुलोक आ गये. उन्होंने भगवान विष्णु से विनती की कि वे देवों को वृत्तासुर के कोप से बचाएं अन्यथा इस असुर के हाथों समस्त देवजाति का विनाश हो जायेगा. इस पर भगवान विष्णु बोले कि वृत्तासुर से उन्हें कोई नहीं बचा सकता, क्योंकि संसार में ऐसा कोई अस्त्र नहीं जिससे वृत्तासुर का वध किया जा सके. विष्णुजी बोले कि ‘इस समय न ही मैं, न ही स्वयं भगवान शिव, न ही ब्रह्मा जी उनकी रक्षा कर सकते हैं. इस समय उन्हें अपने प्राण बचाने के लिए मृत्युलोक में महर्षि दधीचि के पास जाना होगा और उनसे उनकी हड्डियों को दान में मांगना होगा. दधीचि की हड्डियों से बने वज्र से ही वृत्तासुर को पराजित किया जा सकता है.’
मृत्युलोक पहुंचे इंद्रदेव
भगवान विष्णु की सलाह मान इंद्रदेव महर्षि दधीचि के आश्रम में पहुंचे. उस समय महर्षि तपस्या में लीन थे. तप के प्रभाव से उनकी हड्डियां वज्र से भी अधिक शक्तिशाली हो गयी थीं. इंद्रदेव महर्षि की तपस्या समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगे. जब महर्षि की तपस्या टूटी, तो उनकी दृष्टि हाथ जोड़े इंद्रदेव पर पड़ी. महर्षि ने हंसते हुए पूछा, ‘देवेंद्र! आज इस मृत्युलोक में आपका किस कारण से आगमन हुआ है? देवेलोग में सब कुशल-मंगल तो है? दधीचि के पूछने पर इंद्रदेव ने उन्हें देवलोक पर वृत्तासुर के आक्रमण और देवताओं के देवलोक छोड़ने की बात बतायी. इंद्रदेव ने महर्षि को बताया कि वे भगवान विष्णु की सलाह पर उनके पास उनकी हड्डियों का दान मंगाने आये हैं. यदि महर्षि प्रसन्न होकर अपनी हड्डियां उन्हें दान में दे दें, तो उससे बने वज्र से वृत्तासुर का अंत किया जा सकता है और देवलोक पर पुन: अधिकार किया जा सकता है.
तेजवान वज्र का निर्माण
देवेंद्र के आग्रह पर महर्षि दधीचि अपनी हड्डियों को दान में देने के लिए तैयार हो गये. उन्होंने कहा कि ‘यदि मेरे अस्थि दान से त्रिलोक का कल्याण होता है, तो मैं अपनी अस्थियों का दान देने के लिए सहर्ष तैयार हूं.’ इसके बाद महर्षि ने अपने शरीर का त्याग कर दिया. एक-एक कर उनके शरीर से त्वचा, मांस व मज्जा अलग हो गये और मानव देह के स्थान पर केवल हड्डियां ही शेष रह गयीं. देवेंद्र ने महर्षि के अस्थियों को नमन किया और फिर उससे ‘तेजवान’ नामक वज्र बनाया. महर्षि की हड्डियों से बने तेजवान वज्र की सहायता से देवराज इंद्र ने वृत्तासुर के साथ युद्ध किया. इस बार तेजवान के आगे असुर की शक्ति काम न आयी. इंद्र ने वज्र के प्रहार से उसका अंत कर दिया. इस प्रकार इंद्रदेव स्वयं तो भयमुक्त हुए ही तीनों लोकों को भी भयमुक्त किया. एक बार फिर से इंद्रदेव का देवलोक पर अधिकार स्थापित हुआ.
Rakshabandhan 2025: राखी बंधवाते समय भाई को किस दिशा में बैठाना शुभ, रक्षाबंधन पर अपनाएं ये वास्तु टिप्स
Sawan Pradosh Vrat 2025: श्रावण मास का अंतिम प्रदोष व्रत आज, इस विधि से करें पूजा
Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन पर इस बार 95 सालों बाद बन रहा है दुर्लभ योग, मिलेगा दोगुना फल
Aaj Ka Panchang: आज 6 अगस्त 2025 का ये है पंचांग, जानिए शुभ मुहूर्त और अशुभ समय की पूरी जानकारी