Sawan 2025 में बाल और दाढ़ी नहीं कटवाते हैं लोग, जानें इसके पीछे की धार्मिक वजह

Sawan 2025: सावन 2025 का महीना शुरू होते ही शिवभक्त भक्ति और आस्था में डूब जाते हैं. इस पवित्र मास में बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा प्रचलित है. लेकिन इसके पीछे केवल धार्मिक आस्था ही नहीं, बल्कि कई गहरे पौराणिक और ज्योतिषीय कारण भी छिपे हैं.

By Shaurya Punj | July 8, 2025 9:18 PM
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Sawan 2025: हिंदू धर्म में सावन का महीना विशेष आध्यात्मिक महत्व रखता है. यह पूरा मास भगवान शिव को समर्पित होता है. इस दौरान भक्तगण पूजा-पाठ, व्रत, और संयमित जीवनशैली को अपनाते हैं. सावन में बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा भी इसी धार्मिक श्रद्धा और ज्योतिषीय मान्यताओं से जुड़ी हुई है.

धार्मिक दृष्टिकोण

सावन को भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ समय माना गया है. इस महीने में साधना, तपस्या और पवित्रता पर विशेष बल दिया जाता है. बाल और दाढ़ी कटवाना भौतिक सजावट का प्रतीक माना जाता है, जो एकाग्रता और साधुता के मार्ग में विघ्न डाल सकता है. इसलिए साधु-संत भी सावन में अपने बाल नहीं कटवाते, और आम श्रद्धालु भी इसी मार्ग को अपनाते हैं.

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ज्योतिषीय कारण

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सावन के दौरान चंद्रमा और अन्य ग्रहों की स्थिति कुछ विशेष प्रकार की ऊर्जा उत्पन्न करती है. यह समय मानसिक संतुलन और आत्मिक शांति के लिए उपयुक्त होता है. बाल या दाढ़ी कटवाने से शरीर की ऊर्जा प्रणाली में असंतुलन आ सकता है, जिससे चित्त की स्थिरता प्रभावित हो सकती है. इसलिए इस महीने में बाल न कटवाना ज्योतिषीय रूप से भी हितकारी माना गया है.

स्वास्थ्य और आयुर्वेदिक पहलू

सावन वर्षा ऋतु का हिस्सा होता है, जब वातावरण में नमी और संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. इस समय त्वचा अधिक संवेदनशील होती है और बाल या दाढ़ी कटवाने से त्वचा पर कटने या इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है. प्राचीन काल में चिकित्सा सुविधाओं की कमी के चलते यह परंपरा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी थी.

परंपरा और सांस्कृतिक प्रतीक

सावन में भगवान शिव का रूप धारण करने की भावना से भी बाल और दाढ़ी नहीं कटवाने की परंपरा जुड़ी है. शिवजी को “जटाधारी” कहा जाता है, और उनके अनुयायी इस रूप को अपनाने में गर्व महसूस करते हैं. यह केवल एक धार्मिक नियम नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति का प्रतीक बन चुका है.

सावन में बाल और दाढ़ी न कटवाने की परंपरा केवल एक धार्मिक अनुशासन नहीं, बल्कि इसके पीछे ज्योतिषीय, स्वास्थ्य संबंधी और सांस्कृतिक पहलू भी गहराई से जुड़े हुए हैं. यह परंपरा आस्था के साथ-साथ आत्मनियंत्रण और संयम का अभ्यास भी सिखाती है.

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