Sawan 2025: सावन का महीना भगवान शिव की आराधना और जलाभिषेक की अद्वितीय परंपरा से जुड़ा हुआ है. इस दौरान देशभर में शिवालयों में भक्तों की चहल-पहल देखने को मिलती है. श्रद्धालु रुद्राभिषेक करते हैं, कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और आस्था से लोटा-लोटा जल शिवलिंग पर अर्पित करते हैं. ऋषियों ने सावन में जल चढ़ाने की जो व्यवस्था बनाई, उसके पीछे केवल धार्मिक नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक और प्रकृति से जुड़े कारण भी हैं.
सावन है शिव के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का महीना
सबसे पहला कारण है भगवान शिव के प्रति आभार प्रकट करना, जिनके जटाओं में गंगा विराजती हैं और जो इस तपती धरती को राहत देने वाले सावन माह के देवता माने जाते हैं. मान्यता है कि इस पावन महीने में शिव कैलाश से उतरकर धरती पर आते हैं और जनसामान्य के बीच रहते हैं. यह हमें सिखाता है कि चाहे कोई कितना भी ऊँचा क्यों न हो, उसे समाज से जुड़कर रहना चाहिए ताकि उसका लाभ सभी को मिल सके.
जहां प्रवाह है, वहीं पवित्रता है
जिस प्रकार आकाश सावन में वर्षा कर धरती और जीवन को तृप्त करता है, उसी तरह हमें भी अपने भीतर की करुणा और संवेदना को प्रवाहित करना चाहिए. एक लोटा जल चढ़ाने का वास्तविक अर्थ यही है कि हम दूसरों के जीवन को शीतलता दें, उनकी पीड़ा में सहभागी बनें. जहां प्रवाह होता है, वहीं पवित्रता होती है—चाहे वह नदी का जल हो या हमारे हृदय की संवेदनाएं. स्थिरता और संग्रह हमें जड़ बना देती है, जबकि प्रवाह जीवन में ऊर्जस्विता लाता है.
सावन में उमड़ते-घुमड़ते बादल केवल वर्षा के सूचक नहीं, बल्कि वे मंत्रोच्चारण जैसे प्रतीत होते हैं. जब वे गरजते हैं, तब किसान खेतों में उनका स्वागत करते हुए खेती में जुट जाते हैं. यह एक अनुपम तालमेल है प्रकृति और पुरुषार्थ का.
सावन का समर्पणमय संदेश
सावन का महीना केवल शिव आराधना का समय नहीं, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि जैसे समुद्र बादलों के रूप में धरती पर जल लौटाता है, वैसे ही हमें भी माता-पिता, समाज और प्रकृति के प्रति अपने ऋण को समझना चाहिए. यह महीना हमें त्याग, करुणा, सेवा और आत्मशुद्धि की राह दिखाता है. शिव मंदिरों में बहती जलधाराएं और मंत्रों की ध्वनि हमें स्मरण कराती हैं कि यदि जीवन में पवित्रता चाहिए तो उसे प्रेम, स्नेह और संवेदना से सींचना होगा.