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Sawan 2025 में तुलसी तोड़ना क्यों माना जाता है वर्जित? जानिए धार्मिक कारण

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Sawan 2025 में तुलसी तोड़ना क्यों माना जाता है वर्जित? जानिए धार्मिक कारण
Sawan 2025

Sawan 2025 : हिंदू धर्म में तुलसी को माता का दर्जा प्राप्त है. इसे न केवल एक पवित्र पौधा माना जाता है, बल्कि इसका पूजन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की आराधना का अभिन्न अंग है. परंतु, सावन मास में तुलसी के पत्ते तोड़ने की मनाही है. इसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और शास्त्रीय कारण छिपे हैं, जिन्हें जानना प्रत्येक भक्त के लिए आवश्यक है:-

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– तुलसी माता और भगवान विष्णु का खास संबंध

शास्त्रों में वर्णित है कि तुलसी माता भगवान विष्णु की अति प्रिय हैं. सावन मास में भगवान शिव की विशेष पूजा होती है और भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं देवशयनी एकादशी के बाद. ऐसे में तुलसी माता भी विश्राम करती हैं. उन्हें छेड़ना या उनके पत्ते तोड़ना एक प्रकार से उनकी निंदा के समान माना जाता है. यह अवधि “तुलसी निषेध काल” कहलाती है.

– गरुड़ पुराण और धर्म शास्त्रों में निषेध

गरुड़ पुराण, पद्म पुराण और विष्णु धर्मसूत्र में स्पष्ट वर्णन है कि एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तुलसी विवाह तक तुलसी पत्र नहीं तोड़ना चाहिए. यह काल तुलसी जी का ‘निद्रा काल’ कहा गया है. इस समय उनका अपमान करने से पुण्य नहीं बल्कि पाप लगता है.

– पौधों की चेतना और विश्राम काल

हिंदू धर्म में वृक्षों और पौधों को केवल जैविक तत्व नहीं माना गया है, बल्कि उन्हें चेतन माना गया है. सावन मास में अत्यधिक वर्षा और आर्द्रता के कारण तुलसी की ऊर्जा ग्रहण करने की शक्ति कम हो जाती है. इस समय वे ‘तपस्या’ में लीन मानी जाती हैं और उन्हें छेड़ना अशुभ होता है.

– तुलसी तोड़ने से शिव पूजा निष्फल मानी जाती है

सावन का महीना शिव भक्ति का महापर्व है. इस मास में शिवलिंग पर बेलपत्र, जल, दूध आदि चढ़ाया जाता है, लेकिन तुलसी पत्र का प्रयोग वर्जित है. यदि कोई अनजाने में भी तुलसी तोड़कर उसे शिव को अर्पित कर देता है, तो वह पूजा शास्त्रों के अनुसार निष्फल मानी जाती है.

– प्रकृति रक्षा का प्रतीक

सावन में तुलसी के पौधे में नई कोपलें आती हैं। यदि इस समय उन्हें बार-बार तोड़ा जाए तो पौधा कमजोर हो सकता है. धार्मिक वर्जनाएं केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने का भी सूक्ष्म प्रयास हैं.

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सावन के पवित्र माह में तुलसी को न तोड़ना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्रकृति, भक्ति और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के बीच संतुलन बनाए रखने की सीख है. अतः सावन में तुलसी माता का सम्मान करें, और उन्हें शांति से विश्राम करने दें.

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