पहली बार कब रखा गया था सावन सोमवार का व्रत? जानें इसकी पौराणिक कथा और महत्त्व

Sawan Somvar Vrat 2025: सावन सोमवार व्रत का विशेष महत्व है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन सोमवार का व्रत सबसे पहले किसने और क्यों रखा था? इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथाएं देवी पार्वती और चंद्रदेव की आस्था से जुड़ी हैं. आइए जानें इसकी शुरुआत और आध्यात्मिक महत्त्व.

By Shaurya Punj | July 12, 2025 10:02 AM
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Sawan Somvar Vrat 2025: सावन मास शिवभक्ति का सबसे पुण्यकाल माना जाता है,और इसी महीने के प्रत्येक सोमवार को रखा जाने वाला व्रत शिव‑कृपा का अनमोल साधन है. क्या आपने कभी सोचा है कि इस व्रत की नींव कब और किसने रखी? आइए, पौराणिक कथाओं में उतरकर इसका स्रोत जाने  और महत्त्व समझें.

देवी पार्वती की तपस्या: व्रत की मूल कथा

मान्यता है कि पहली बार सावन सोमवार का व्रत स्वयं देव  पार्वती ने रखा. वे भगवान शिव को पति रूप में पाने हेतु कठोर तप में लीन थीं.  नारद मुनि ने उन्हें मार्ग दिखाते हुए सावन मास के हर सोमवार को उपवास, एकाग्र ध्यान और शिवलिंग पर जलाभिषेक करने का विधान बताया. माता पार्वती ने नियम‑पूर्वक सभी सोमवारों का व्रत किया और उनके अटूट संकल्प से प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें वर रूप में स्वीकार किया. यही कारण है कि यह व्रत आज भी अविवाहित कन्याओं के लिए अत्यन्त फलदायी माना जाता है;श्रद्धापूर्वक यह व्रत रखने से योग्य जीवन‑साथी की प्राप्ति होती है.

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चंद्रदेव की कथा: संकट मोचक व्रत

एक अन्य प्रचलित कथा चंद्रदेव से जुड़ी है. कहते हैं कि चंद्रमा ने किसी प्रसंग में शिवजी का अनादर कर दिया, परिणामस्वरूप भगवान शिव ने उन्हें श्राप दिया कि उनका तेज क्षीण हो जाएगा. व्याकुल चंद्रदेव ने सावन मास के सोमवार को उपवास रखते हुए शिवलिंग पर गंगाजल और दूध से अभिषेक किया. भक्ति देख शिवजी का हृदय पसीजा और उन्होंने चंद्रदेव को श्रापमुक्त कर दिया. तब से यह व्रत रोग‑शोक निवारण, मानसिक शांति और संकटों से मुक्ति का उपाय भी माना जाने लगा.

व्रत का शाश्वत महत्त्व

इन दोनों कथाओं का सार यह है कि सावन सोमवार व्रत केवल विवाह‑योग्यता या संकट‑निवारण तक सीमित नहीं है;यह समर्पण, संयम और श्रद्धा का प्रतीक है. प्राचीन काल से लेकर आज तक करोड़ों शिवभक्त इस व्रत को धारण कर भोलेनाथ से जीवन‑सुख, समृद्धि और मोक्ष की कामना करते हैं. सुबह स्नान के बाद व्रती निर्जल या फलाहार रहकर शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, दूध और मधुर पुष्प अर्पित करते हैं, मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जप करते हैं और संध्या आरती के बाद व्रत का पारण करते हैं.

सावन सोमवार का व्रत, जिसकी शुरुआत देवी पार्वती की तपस्या और चंद्रदेव की प्रार्थना से हुई मानी जाती है, आज भी अखंड श्रद्धा की परम्परा के रूप में जीवित है. इस व्रत से जुड़ा हर संकल्प हमें बताता है कि अटूट भक्ति और नियमबद्ध साधना से शिवकृपा अवश्य प्राप्त होती है.

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