पटना : आपको यह खुलासा अचंभित कर सकता है. कालसर्प योग की दोष शांति के लिए लोग हजारों-लाखों रुपयों का उपाय करते आये हैं. असल में ज्योतिष शास्त्र उस दोष को प्रामाणिकता ही नहीं देता.
ज्योतिष के किसी भी प्रामाणिक ग्रंथ में कालसर्प योग का वर्णन नहीं है. साथ में यह भी बताते हैं कि जब राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह हों, तो सिर्फ अशुभकारी ही नहीं होते हैं. ज्योतिर्विदों को ऐसी कुंडलियों का सूक्ष्म स्तर पर अध्ययन करना चाहिए. उसके बाद ही निर्णय सुनाना चाहिए. शास्त्रों में हर समस्या का हल बताया गया है.
कालसर्प के संदर्भ में अनेक भ्रांतियां फैलाई गई हैं. कालसर्प के समर्थक इसे 288 (144 राहु और 144 केतु) प्रकार का मानते हैं. हवाला देते हैं कि राहु और केतु के बीच में सभी ग्रहों के होने से यह योग बनता है. उपाय के लिए एक हजार से लेकर लगभग एक लाख रुपये तक का खर्च बताया जाता है. इसमें गंगा बंधन ‘आर-पार की साड़ी, फूल से बांधना’, स्वर्ण-चांदी के नाग-नागिन का दान, इसकी अंगूठी पहनना आदि उपाय बताए जाते हैं. कालसर्प की अवधारणा कहीं से भी शास्त्रीय नहीं है.
कालसर्प योग पूरी तरह मार्केटिंग का शब्द है. ज्योतिष के प्रामाणिक ग्रंथों में कालसर्प योग का जिक्र नहीं है. पूरी तरह से अशास्त्रीय हैं. कालसर्प के नाम से जनता को गुमराह किया जा रहा है.
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