Vrat Rules: सिर्फ भोजन नहीं, व्रत के दौरान विचारों का भी रखें संयम, तभी मिलेगा सच्चा पुण्य
Vrat Rules: व्रत केवल भोजन का त्याग नहीं, बल्कि मन और विचारों की शुद्धता का भी अभ्यास है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उपवास के दौरान यदि विचार नकारात्मक हों तो व्रत का पुण्यफल घट सकता है. इसलिए व्रत के समय संयमित सोच और शांत चित्त बनाए रखना बेहद जरूरी होता है.
By Shaurya Punj | July 30, 2025 10:44 AM
Vrat Rules: उपवास या व्रत को केवल भोजन त्याग तक सीमित नहीं माना गया है. यह एक शारीरिक, मानसिक और आत्मिक साधना का रूप है. धर्मग्रंथों और ऋषियों की शिक्षाओं के अनुसार, उपवास करते समय मन, वचन और कर्म – इन तीनों का शुद्ध होना आवश्यक है. यदि शरीर उपवास में है लेकिन मन नकारात्मक विचारों से भरा है, तो व्रत का पूरा पुण्य प्राप्त नहीं होता.
मन पर नियंत्रण ही सच्चा व्रत
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति केवल बाह्य रूप से इंद्रियों को नियंत्रित करता है, लेकिन मन से विषयों में आसक्त रहता है, तो वह केवल दिखावा करता है. इसीलिए व्रत के दौरान मन को भी शुभ, शांत और भक्तिपूर्ण बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है. यदि ईर्ष्या, क्रोध या छल के भाव हों, तो व्रत अधूरा माना जाता है.
विचारों की भूमिका
योग दर्शन में स्पष्ट कहा गया है कि विचार ही ऊर्जा को दिशा देते हैं. जब शरीर संयम में होता है, तो विचारों का प्रभाव और अधिक गहरा हो जाता है. व्रत में यदि व्यक्ति करुणा, भक्ति और सकारात्मक सोच रखता है, तो उसका पुण्य कई गुना बढ़ जाता है.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक मनोविज्ञान भी इस तथ्य की पुष्टि करता है कि उपवास के समय मन अधिक ग्रहणशील होता है. ऐसे में नकारात्मक सोच मानसिक तनाव और अशांति को बढ़ा सकती है. सकारात्मक विचार मन को स्थिर और आनंदित बनाते हैं. सच्चा व्रत वही है जिसमें केवल शरीर नहीं, बल्कि मन भी संयमित और शुद्ध हो. भोजन का त्याग तभी सार्थक है जब विचार भी ईश्वर और सेवा से जुड़े हों. उपवास का पुण्य तभी फलदायी होता है जब वह संपूर्ण समर्पण और शुद्धता के साथ किया जाए.