ENG vs IND: एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के पांचवें मैच के दूसरे दिन मेजबान इंग्लैंड के खिलाड़ी बाजू पर सफेद पट्टी बांधकर मैदान पर उतरे हैं. एक अगस्त को ग्राहम थोर्प का 56वां जन्मदिन है और इस अवसर को ‘थॉर्पी दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है, जो उनके जीवन, विरासत और खेल पर उनके स्थायी प्रभाव का उत्सव है. थोर्प, जिनका पिछले अगस्त में 55 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. वह लंबे समय से अवसाद और चिंता से जूझ रहे थे. आत्महत्या से उनकी मृत्यु एक कठिन दौर के बाद हुई, जिसमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी संघर्ष शामिल थे. Why England players enter field wearing white headbands
हमेशा सफेद हेडबैंड लगाते थे थोर्प
कोविड से प्रभावित 2021-22 एशेज दौरे के दौरान थोर्प इंग्लैंड के कोचिंग दस्ते का हिस्सा थे. उनकी पत्नी, अमांडा थोर्प ने कोविड-काल के प्रतिबंधों के उन पर पड़े प्रभाव के बारे में बता करते हुए बताया, ‘कोविड के माहौल में काम करना उनके लिए कठिन था. वह अच्छे समय में भी नियमों का पालन करने में अच्छे नहीं थे. यह सब बहुत तनावपूर्ण था और उस दौरे में भी उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.’ इंग्लैंड के खिलाड़ी और अधिकारियों ने सफेद हेडबैंड थोर्प के खास लुक के सम्मान के रुप में इस्तेमाल किया है.
बेटियों ने शुरू की अनोखी पहल
उनकी पत्नी और बेटियों, किट्टी और एम्मा द्वारा डिजाइन किए गए ये हेडबैंड मानसिक स्वास्थ्य चैरिटी माइंड के लिए धन जुटाने के लिए आयोजन स्थल पर बेचे जा रहे हैं. इससे होने वाली आय ‘थॉर्पीज बैट एंड चैट’ नामक एक पहल का समर्थन करेगी, जो क्रिकेट के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है. इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे लोगों के लिए एक सुरक्षित जगह बनाना है जहां वे खेल से जुड़ सकें, अपनी बात साझा कर सकें और उसमें शामिल हो सकें. एम्मा थोर्प ने कहा, ‘मेरे पिताजी काफी निजी व्यक्ति थे, इसलिए उनके और अपने अनुभव साझा करना उन लोगों की मदद करने के लिए जरूरी है जो ऐसी ही परिस्थितियों से गुजरे हैं.’
टेस्ट में थोर्प के नाम 6000 से अधिक रन
थोर्प इंग्लैंड के सबसे सफल टेस्ट बल्लेबाजों में से एक हैं, जिन्होंने 100 टेस्ट मैचों में 44.66 की औसत से 6,744 रन बनाए हैं. उन्होंने 1993 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक अविस्मरणीय डेब्यू किया और दो दशकों में डेब्यू मैच में शतक बनाने वाले पहले इंग्लैंड के खिलाड़ी बने. अपने खेल के दिनों के बाद, उन्होंने कोचिंग की ओर रुख किया और सरे और ईसीबी दोनों के साथ काम किया. इसके बाद उन्हें अफगानिस्तान का मुख्य कोच नियुक्त किया गया, लेकिन अपनी बिगड़ती सेहत के कारण उन्होंने यह पद कभी नहीं संभाला.
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