Sepak Takraw World Cup 2025: इन दिनों राजधानी पटना में दक्षिण-पूर्व एशिया के पारंपरिक खेल ‘सेपक टाकरा’ का आयोजन किया जा रहा है. ऐसा पहली बार है जब बिहार ‘सेपक टाकरा वर्ल्ड कप’ की मेजबानी कर रहा है. इसमें 19 देशों की महिला खिलाड़ी भी पार्टिसिपेट कर रही हैं. वैसे तो महिलाएं अब हर खेल में पहले से कहीं ज्यादा आगे बढ़ रही हैं, और पुरुषों से आगे निकल रही हैं. वे ‘सेपक टाकरा’ जैसे कठिन खेलों में अपनी जगह बना रही हैं. आइए जानते हैं कि इस खेल से जुड़ीं महिला खिलाड़ियों का बिहार आने का अनुभव व सेपक टाकरा से जुड़ने की कहानी कैसी रही.
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रह चुकी हूं चैंपियनशिप -बिधुमुखी सिंघा, असम
असम की महिला कोच बिधुमुखी सिंघा ने सेपक टाकरा से जुड़ने के अपने सफर को साझा किया. 1998 में इंटर पास करने के बाद उन्होंने इस खेल में कदम रखा, और कुछ ही सालों में राष्ट्रीय चैंपियनशिप में पदक जीते. अब वे 2014 से कोच के रूप में कार्यरत हैं और बच्चों व लड़कियों को इस खेल से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं. उनका कहना है कि भाषा एक बड़ी चुनौती रही है, लेकिन सालों के अनुभव ने उन्हें हिंदी व अंग्रेजी में संवाद करने में मदद की. उनके दो भाई-बहन भी इस खेल से जुड़े हुए हैं.
स्कूल में पहली बार इस गेम को देखा और इससे जुड़ गयी -मोनिका, हरियाणा
हरियाणा की मोनिका ने स्कूल में पहली बार सेपक टाकरा देखा और तुरंत इस खेल में रुचि ली. वह आज भारतीय महिला टीम की प्रमुख खिलाड़ी हैं, जिन्होंने साउथ एशियन चैंपियनशिप और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे बड़े टूर्नामेंट्स में हिस्सा लिया है. मोनिका ने बताया कि बिहार आने पर जो छवि बाहर सुनने को मिलती थी, वह वास्तविकता से बिल्कुल अलग है. बिहार की महिलाएं इस खेल को लेकर बहुत उत्साहित हैं, और उनका सपना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन करना है. अभी मैं ग्रेजुएशन सेकेंड इयर में हूं.
फुटबॉल खिलाड़ी को मिल गयी एक नयी पहचान -अयेकपम मइपक
मणिपुर की अयेकपम मइपक पहले फुटबॉल खिलाड़ी थीं, लेकिन सेपक टाकरा में उनकी भागीदारी ने उन्हें एक नयी पहचान दिलायी. उन्होंने 2008 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड जीते और अब तक 14 बार वर्ल्ड चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. अयेकपम ने बताया कि शुरुआत में खिलाड़ी से संवाद में कठिनाई होती थी, लेकिन समय के साथ उन्होंने इस पर काम किया और अब वे एक कुशल खिलाड़ी के तौर पर पहचानी जाती हैं. साल 2017 में स्पोर्ट्स कोटा के तहत मेरा चयन सशस्त्र सीमा बल(एसएसबी) में हुआ और मैं अभी असम के तेजपुर में पोस्टेड हूं.
बिहार के इंफ्रास्ट्रक्चर व बदलावों से काफी प्रभावित हूं -मेनेनु त्सुकरू, नागालैंड
नागालैंड की मेनेनु त्सुकरू ने बताया कि सेपक टाकरा में अपनी स्ट्राइकर भूमिका निभाने के दौरान उन्होंने कई बड़े टूर्नामेंट्स में भाग लिया है. शुरुआत में भाषा की समस्या थी, लेकिन टीवी देखकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी सीखी. मेनेनु ने यह भी बताया कि अब तक वह बिहार में कई बार आ चुकी हैं और यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर और बदलावों से प्रभावित हैं. मेनेनु वर्ष 2014 में बिहार पहली बार आयी थीं. उन्होंने बताया कि 2012 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप से इस खेल की शुरुआत की थी. खेल में रुचि होने की वजह से 12वीं तक ही पढ़ सकी हैं. वे अब तक वर्ल्ड चैंपियनशिप(किंग्स कप) 3 बार खेल चुकी हैं.
20 साल फुटबॉल खेलने के बाद सेपक टाकरा को चुना -एग्निज़्का, पोलैंड
पोलैंड से आयीं एग्निज़्का ने 20 साल तक फुटबॉल खेला, और अब वह सेपक टाकरा में अपनी किस्मत आजमा रही हैं. पोलैंड में टेक बॉल खेलते हुए उन्होंने इस खेल का अनुभव लिया है, और भारत में इस खेल को पहली बार अनुभव कर रही हैं. उनका कहना है कि यहां के लोग बहुत मिलनसार हैं और भारत में आकर उन्हें बहुत अच्छा महसूस हुआ है. पोलैंड के ठंडे मौसम के विपरीत भारत का मौसम उन्हें बहुत अच्छा लगा. वे कहती हैं, महिलाएं अपनी मेहनत न सिर्फ इस खेल को लोकप्रिय बना रही हैं, बल्कि सेपक टाकरा जैसे कठिन खेलों में अपनी जगह भी बना रही हैं.
IND vs AUS: ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिये भारतीय हॉकी टीम का ऐलान, युवा खिलाड़ियों को मिला मौका
विराट के साथ रिलेशनशिप को लेकर तमन्ना भाटिया ने तोड़ी चुप्पी, कहा- बहुत तकलीफ होती है…
पैसों की तंगी, उधार की किट, लेकिन जज्बा ऐसा कि इंडिया U-16 टीम तक पहुंच गए कृष्णा भगत
ढाबा मालिक की बेटी की लंबी छलांग, हिसार से विश्व चैंपियनशिप तक का सफर नहीं था आसान