ताराबाड़ी. पग-पग पोखर माछ मखान के लिए प्रसिद्ध मिथिला की प्राचीन जीवन पद्धति वैज्ञानिक रही है. नवविवाहितों को सुखमय दाम्पत्य जीवन जीने की कला सिखाने वाला 15 दिवसीय पारंपरिक लोकपर्व मधुश्रावणी नहाय-खाय के साथ सोमवार से शुरू हो गया है. नव विवाहित महिलाएं के द्वारा किए जाने वाले इस पूजा का विशेष महत्व है. सोमवार को नवविवाहित महिलाएं प्रातः पवित्र गंगा स्नान कर पूजा-पाठ करने के पश्चात अरवा भोजन ग्रहण कर पर्व को शुरू कर चुकी हैं.
प्रियतम का रहता है इंतजार
पूजा में 14 खंड कथा का किया जाता है श्रवण
गौरी विषहरा की आराधना करने वाली नवविवाहिता का सुहाग रहता है दीर्घायु
टेमी दागने की भी है परंपरा
मायके व ससुराल वालों के सहयोग से होती है पूजा
पूजा में भाई का भी विशेष योगदान
आज भी बरकरार है पुरानी परंपराएं
सदियों से चली आ रही मिथिला संस्कृति का महान पर्व आज भी बरकरार है. नव विवाहिता श्रद्धा भक्ति के साथ पूजा करती हैं. इस कर्म में महिलाएं समूह बना कर मैथिली गीत गाकर भोले शंकर को खुश करती हैं. आने वाले पीढ़ी को आगाह करती हैं कि इस परंपरा को बरकरार रखना है.
कहती हैं नव विवाहिताएं
नव विवाहित महिला मदनपुर निवासी मोहिनी शुक्ला, प्रीति कुमारी, ऋतु कुमारी आदि ने बताया कि यह पूजा एक तपस्या के समान है. इस पूजा में लगातार 16 दिनों तक नव विवाहित महिला प्रतिदिन एक बार अरवा भोजन करती हैं. इसके साथ ही नाग, नागिन, हाथी, गौरी शिव आदि की प्रतिमा बना कर प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के फूलों फलों व मिठाइयों से पूजन किया जाता है. सुबह नाग देवता को दूध, लावा का भोग लगाया जाता है.
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