आरा.
परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर श्रीलक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने मन को बहुत ही चंचल बताया. इस दुनिया में यदि सबसे तेज चलने वाला कोई भी चीज है, तो वह मन है. मन हमारा इतना चंचल है कि हम यहां बैठे हुए हैं, लेकिन मन हमारा हजारों किलोमीटर दूर कहीं पर चला गया है. यह मन हवा, अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आकाश से भी अधिक चंचल है.कभी-कभी यह चंचल मन बड़े-बड़े संत को भी भ्रमित कर देता है. लेकिन बड़े-बड़े ऋषि महर्षि तपस्वी इस चंचल मन को भी अपनी तप और साधना से साधने का निरंतर प्रयास करते रहते हैं.जीवन में निरंतर काम करते रहना चाहिए. कर्म का त्याग ही मन को और गतिशील बना देता है. कहा जाता है कि खाली मस्तिष्क जो है कई रोगों का घर होता है. इसीलिए आप अपने मस्तिष्क दिमाग शरीर को किसी न किसी अच्छे कार्य में लगा कर रखें. जिससे आपके मन दिमाग में खालीपन नहीं होगा. जब हम निरंतर अच्छे कार्यों में लगे रहते हैं. तब हमारे मन में अच्छे विचार भी आते हैं. इसीलिए मन को मनुष्य का भाग्य और दुर्भाग्य का विधाता भी कहा गया.प्रवचन करते हुए स्वामी जी ने व्यक्ति और व्यक्तित्व पर भी चर्चा किया. व्यक्ति के व्यक्तित्व के आधार पर आदर सम्मान या अपमान होता है. भारतीय दर्शन एक ऐसा दर्शन है जिसमें हम किसी व्यक्ति के अच्छे कार्यों की सराहना करते हैं तथा उसके बुरे कर्मों का हम अनादर भी करते हैं.रावण के द्वारा शिव तांडव लिखा गया था. जिसको आज हम लोग स्मरण करते हैं. शिवजी को दो चीज पसंद है. पहले उनके ससुर का जो बुराई करता है. दूसरा शिव तांडव का जो पाठ करता हो.उस पर भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं.रावण के द्वारा लिखे गए शिव तांडव का हम लोग आदर करते हैं. लेकिन रावण के द्वारा जिस प्रकार से गलत कामों को किया गया उसी के प्रतीक आज हम लोग रावण के गलत विचार को पुतला के रूप में जलते हैं. अच्छे व्यक्ति के गुण का हमेशा सम्मान होना चाहिए. हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ अच्छे गुण होते हैं. चाहे वह व्यक्ति छोटा हो या बड़ा हो. उसके गुण का सम्मान तो होना ही चाहिए. श्रीमद्भागवत कथा को आगे बढ़ाते हुए स्वामी जी ने नारद जी के श्रीमद् भागवत श्रवण करने की कथा को विस्तार से समझाया. नारद जी जब सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार से श्रीमद् भागवत कथा सुन रहे थे. उस पर चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा श्रीमद् भागवत कथा सुनने से भक्ति ज्ञान वैराग्य को शक्ति प्राप्त हुई. भक्ति के दो पुत्र थे ज्ञान और बैग. भक्ति जो एक नारी के रूप में बैठी हुई थी. वही उनके दो पुत्र मरनशील अवस्था में थे. जिनको देखने पर पता चल रहा था कि उनकी आयु बहुत ज्यादा हो गई है. उस समय नारद जी ने उनसे पूछा देवी जी आप यहां विलाप कर रही हैं. यह आपके कौन हैं. भक्ति देवी ने कहा यह मेरे पुत्र हैं. नारद जी मन ही मन सोचने लगे कि इनका उम्र बहुत कम दिखाई पड़ रहा है तथा जो लोग भी यहां मरनशील अवस्था में है.उनकी आयु अधिक दिखाई पड़ रही है. ऐसा कैसे हो सकता है कि स्त्री का उम्र कम हो और उनके पुत्र का उम्र ज्यादा हो मन ही मन ही सवाल को लेकर के मन में विचार कर रहे थे. भक्ति देवी के द्वारा नारद जी को उनके पुत्र के बारे में बताया गया. नारद जी यह हमारे पुत्र ज्ञान और वैराग्य हैं. आज कलयुग में लोग भक्ति ज्ञान और वैराग्य को त्याग दियेे. जिसके कारण ही ज्ञान और वैराग्य मरनशील अवस्था में पड़े हुए हैं. नारद जी ने पूछा आखिर इसका उपाय क्या है. भक्ति देवी ने कहा कलयुग में लोग ज्ञान और वैराग्य को भूल गए जिसके कारण ही यह दशा हुई है. नारद जी ने कहा कि इनको ठीक करने का उपाय क्या है. भक्ति देवी ने कहा इनको यदि श्रीमद् भागवत कथा सुनाई जाए तो यह ठीक हो सकते हैं. इसके बाद नारद जी उस जगह पर पहुंचे जहां पर लोमहर्षण सूत जी और सनक, सनंदन, सनातन, और सनत्कुमार ऋषि के द्वारा श्रीमद् भागवत कथा कहीं जा रही थी. वहीं से भक्ति के पुत्र ज्ञान और वैराग्य को श्रीमद् भागवत कथा श्रवण कराया गया, जिसके बाद भक्ति के पुत्र ज्ञान और वैराग जिंदा होकर जहां कथा हो रहा था वहां पर पहुंच गये.
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