औरंगाबाद/गोह. बिहार सरकार ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले औरंगाबाद जिले को एक ऐतिहासिक सौगात देने की तैयारी कर ली है. जिले के हसपुरा प्रखंड अंतर्गत डिंडिर गांव में मगध और शाहाबाद प्रमंडल का पहला राजकीय कृषि महाविद्यालय खोला जायेगा. इसके लिए 37.5 एकड़ भूमि चिह्नित कर ली गयी है और जल्द ही भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया भी पूरी कर ली जायेगी. यह कॉलेज न सिर्फ औरंगाबाद, बल्कि पूरे मगध और शाहाबाद प्रमंडल के युवाओं के लिए उच्च स्तरीय कृषि शिक्षा का एक नया द्वार खोलेगा. हसपुरा प्रखंड के डिंडिर गांव स्थित डिंडिर जंगल क्षेत्र में आम गैर मजरूआ परती कदीम श्रेणी की 37.5 एकड़ भूमि को कृषि महाविद्यालय के लिए आरक्षित किया गया है. प्रशासनिक स्तर पर सभी जरूरी प्रक्रियाएं तेजी से पूरी की जा रही हैं. 29 जून को हसपुरा सीओ द्वारा अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया गया था, जबकि 16 जुलाई को दाउदनगर अनुमंडल पदाधिकारी और भूमि सुधार उप समाहर्ता ने संयुक्त रूप से अनापत्ति दी है. अब केवल जिला कृषि पदाधिकारी की अंतिम स्वीकृति बाकी है, जिसके बाद भूमि को विधिवत रूप से कृषि विभाग को हस्तांतरित कर दी जायेगी. राज्य सरकार इस योजना को विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले अंतिम रूप देने की मंशा रखती है, ताकि आचार संहिता लागू होने से पहले ही इसकी विधिवत घोषणा कर निर्माण कार्य शुरू किया जा सके. इससे क्षेत्र के लोगों में सरकार के प्रति विश्वास और सकारात्मक माहौल बनेगा. यह निर्णय युवाओं को कृषि शिक्षा के क्षेत्र में नये अवसर प्रदान करेगा, वहीं किसानों को आधुनिक तकनीकों और वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी भी स्थानीय स्तर पर ही मिल सकेगी.
स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध स्तर की पढ़ाई की मिलेगी सुविधा
वैसे राजकीय कृषि महाविद्यालय डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा (समस्तीपुर) के शैक्षणिक ढांचे के अंतर्गत संचालित होगा. यहां स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध स्तर की पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी. इससे स्थानीय छात्रों को राज्य के अन्य बड़े कृषि संस्थानों की ओर पलायन करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और वे अपने ही जिले में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे. अब तक मगध (गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल) और शाहाबाद (रोहतास, कैमूर, बक्सर, भोजपुर) जिलों में एक भी सरकारी कृषि महाविद्यालय नहीं था. हसपुरा में खुलने वाला यह कॉलेज इस इलाके का पहला व इकलौता सरकारी कृषि संस्थान होगा. इससे क्षेत्र के हजारों विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा और कृषि शिक्षा को लेकर नयी सोच विकसित होगी.
किसानों को मिलेगा सीधा लाभ
राजकीय कृषि महाविद्यालय की स्वीकृति मात्र से ही हसपुरा क्षेत्र के ग्रामीणों में उत्साह का माहौल है. स्थानीय लोग इसे विकास की दृष्टि से ऐतिहासिक निर्णय मान रहे हैं. ग्रामीणों का मानना है कि इस कॉलेज के बनने से यहां के किसान वैज्ञानिक तरीकों से खेती करना सीखेंगे, युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा मिलेगी और पूरे क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक व शैक्षणिक विकास को नयी दिशा मिलेगी. वर्तमान में बिहार में कृषि शिक्षा के लिए कुछ प्रमुख संस्थान कार्यरत हैं, जैसे पूसा स्थित डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, सबौर का बिहार कृषि विश्वविद्यालय, किशनगंज का डॉ कलाम कृषि महाविद्यालय, सहरसा का मंडन भारती कृषि महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर का तिरहुत कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर, पटना का मालतीधारी कॉलेज और कुछ निजी विश्वविद्यालय जैसे गोपाल नारायण सिंह यूनिवर्सिटी (सासाराम), आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, संजय गांधी डेयरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी (पटना) और केके यूनिवर्सिटी (नालंदा). इन सभी संस्थानों की उपस्थिति के बावजूद मगध और शाहाबाद के छात्र अब तक कृषि शिक्षा के लिए वंचित थे. हसपुरा में कृषि कॉलेज की स्थापना से यह बड़ा अंतर समाप्त होगा. इससे न केवल शिक्षा का विस्तार होगा, बल्कि बिहार की कृषि अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी. यह निर्णय क्षेत्र की लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करता है और आने वाले वर्षों में यह कॉलेज कृषि क्षेत्र में नवाचार, अनुसंधान व तकनीकी विस्तार का प्रमुख केंद्र बन सकता है. यह निःसंदेह औरंगाबाद जिले के इतिहास में विकास का एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ेगा.
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