अंबा/नवीनगर. वाराणसी-कोलकाता एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए अधिग्रहित की जा रही भूमि के उचित मुआवजे की मांग को लेकर किसानों ने मंगलवार को नवीनगर अंचल कार्यालय के समक्ष धरना दिया. भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले आयोजित धरने की अध्यक्षता यूनियन के अवधेश प्रसाद सिंह व संचालन अमरेंद्र दुबे ने किया. धरने को संबोधित करते हुए नवीनगर विधायक विजय कुमार सिंह उर्फ डब्लू सिंह ने कहा कि सड़क निर्माण कराये जाने के नाम पर सरकार किसानों से जबरन जमीन छिनना चाह रही है, जो उचित नहीं है. किसानों के जीवन यापन के लिए खेती ही एकमात्र सहारा है.
कई किसान हो जायेंगे भूमिहीन:
कई ऐसे किसान है, जिनका एक्सप्रेस-वे निर्माण में अधिग्रहित किए जाने के बाद वे भूमिहीन हो जायेंगे. किसानों को हर हाल में उचित मुआवजा मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि किसानों को उचित मुआवजा दिलाने के लिए वह सड़क से लेकर सदन तक आवाज उठायेंगे. बेढनी पंचायत के मुखिया मनोज सिंह ने भी किसानों के पक्ष में आवाज बुलंद किया. वहीं, किसानों ने सरकार के नीति व अधिकारियों की कार्यशैली पर प्रश्न उठाये. कहा कि कृषि हम सब का आजीविका का मुख्य साधन है. किसान यूनियन के जिला संयोजक वशिष्ठ प्रसाद सिंह ने कहा कि हम सभी को जब तक उचित मुआवजा नहीं मिलेगा, तब तक एक्सप्रेसवे निर्माण के लिए अपनी जमीन नहीं देंगे.
निबंधन नियमावली व कमिश्नर के निर्देशों की हो रही अनदेखी
किसान राजकुमार सिंह ने कहा कि अधिकारी हम सभी किसानों से जबरन जमीन लेना चाह रहे हैं, जो उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि मुआवजा तय करने में अधिकारियों द्वारा बिहार निबंधन नियमावली एवं गया कमिश्नर के निर्देश की अनदेखी की जा रही है. कई किसानों द्वारा कमिश्नर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया था. कमिश्नर द्वारा उचित मुआवजा देने का निर्देश प्राप्त है. इसके साथ ही जमीनों की खरीद -बिक्री करते समय निबंधन कानून का हवाला देकर गांव या किसी सड़क से दो सौ मीटर की दूरी में आने वाली भूमि या छह डिसमिल से कम रकबा वाली भूमि को आवासीय भूमि मानकर निबंधन शुल्क ली जाती है. किसानों द्वारा आवासीय या व्यवसायिक भूमि का निबंधन शुल्क नहीं दिये जाने पर जुर्माना की वसूली की जाती है. इधर, भूमि अधिग्रहण के दौरान निबंधन कानून को ताक पर रखकर आवासीय व व्यवसायिक भूमि का मुआवजा भीठ, धनहर प्रकृति बताया जा रहा है, जो सरासर अन्याय है.
कार्य में सुधार करने की मांग
दिन प्रतिदिन उलझता जा रहा है मामला
किसानों की प्रमुख मांगें
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