Bihar News: बिहार के बेगूसराय से एक बड़ी खबर सामने आई है. 15 फरवरी 2003 को पटना से भागलपुर जा रहे सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस बी पी सिंह पर एन एच 31 पर हुए सनसनीखेज हमले के मामले में अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया है. अपर एवं जिला सत्र न्यायाधीश महेश प्रसाद सिंह की अदालत ने इस मामले पर सुनवाई की है. अदालत ने सरपंच समेत 5 आरोपियों को दोषी करार दिया है.
दोषी ठहराए गए आरोपियों के नाम
दोषी ठहराए गए आरोपियों के नाम शाम्हो थाना के अकबरपुर बरारी बिजुलिया निवासी दिलीप कुमार सिंह (वर्तमान में सरपंच), रंजीत कुमार सिंह, रजनीश कुमार, और लखीसराय जिला थाना के पथुआ निवासी शिवदानी ठाकुर व भुल्लू भगत हैं. न्यायालय ने इन सभी को भारतीय दंड विधान की धारा 147, 148, 427, 337, 353 और 189 के तहत दोषी पाया है.
न्यायिक हिरासत में भेजे गए दोषी
अदालत ने सभी दोषियों के बंध पत्र को रद्द करते हुए उन्हें तत्काल न्यायिक हिरासत में भेजा है. इन सभी को बेगूसराय जेल में रखा गया है. इस केस में सजा के बिंदु पर अगली सुनवाई 20 मई को होगी. अगली सुनवाई में ही दोषियों के सजा का ऐलान किया जाएगा. अभियोजन पक्ष की ओर से अपर लोक अभियोजक बहोर दास ने इस मामले में कुल 11 गवाहों को पेश किया था. अभियोजन के अनुसार, यह घटना नगर थाना क्षेत्र के अंतर्गत एन एच 31 पर स्थित डी सी पेट्रोल पंप के पास घटी थी. आरोप है कि जब जस्टिस बी पी सिंह अपनी कार से गुजर रहे थे, तब इन आरोपियों ने उनके काफिले पर हमला कर दिया था.
हमले में बाल-बाल बचे थे जस्टिस
इस हमले में जस्टिस बाल-बाल बच गए थे, लेकिन उनकी कार का शीशा क्षतिग्रस्त हो गया था. काफिले में मौजूद पुलिसकर्मियों ने मौके पर ही कुछ हमलावरों को पकड़ लिया था. बता दें कि घटना के दिन एक राजनीतिक दल द्वारा बिहार बंद का आह्वान किया गया था और राजनीतिक कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे हुए थे. इस घटना की प्राथमिकी जस्टिस को सुरक्षा दे रहे साहेबपुर कमाल थाना के तत्कालीन अवर निरीक्षक यदुनाथ मिश्रा ने दर्ज कराई थी.
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अब 20 मई पर टिकी निगाहें
आपको बता दें कि जिन धाराओं में न्यायालय ने 5 आरोपियों को दोषी ठहराया है, उनमें भारतीय दंड विधान की धारा 147 में 2 साल, धारा 148 में 3 साल, धारा 189 में 2 साल, धारा 353 में 2 साल, धारा 337 में 6 महीने और धारा 427 में 2 साल तक की सजा का प्रावधान है. अब सभी की निगाहें 20 मई पर टिकी हैं क्योंकि इस दिन अदालत दोषियों को सजा सुनाएगी. 22 साल पुराने इस केस में आए फैसले ने न्यायपालिका पर लोगों के विश्वास को और मजबूत किया है.
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