बिहार के अलग-अलग जिलों में बीएयू सबौर के वैज्ञानिकों द्वारा सर्वेक्षण एवं प्रशिक्षण दिया जा रहा है. केले में आने वाली समस्याओं को देखते हुये बीएयू के कुलपति डॉ डीआर सिंह के दिशा निर्देश पर वैज्ञानिकों की एक टीम गठित की गयी है. इसी क्रम में भागलपुर जिले के तेलघी एवं तुलसीपुर गांव का सर्वेक्षण किया गया. इस दौरान किसानों के खेत पर प्रमुख दो बीमारी सिंगटोका लीफ स्पॉट तथा पनामा बिल्ट देखी गयी. कुछ जगह पर राइजोम रॉट की समस्या भी देखी गयी. वैज्ञानिकों ने केला खेती प्रबंधन विषय पर इस समस्याओं के समाधान के लिए किसानों को प्रशिक्षित किया. प्रबंधन में गरमा जुताई फसल चक्र और समेकित रोग एवं कीट प्रबंधन के बारे में विशेष बल दिया गया. सिंगटोक रोग के प्रबंधन के लिए सर्वप्रथम रोग ग्रसित पत्तियों को हटाकर नष्ट करने की सहला दी. उसके बाद टेबुकोनाजोल और ट्रायफलेक्स एस्ट्रॉबिन के संयुक्त मिश्रण का छिड़काव करे. पनामा बेल्ट के रोकथाम के लिए शुरुआती अवस्था में ट्राइकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो गोबर की खाद में मिलाकर पौधा लगाने के समय तथा दूसरे, चौथे व छठे महीने में पांच किलो प्रति वृक्ष के दर से प्रयोग करे, जहां सड़न के लक्षण दिखाई दे ऐसी स्थिति में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की तीन ग्राम प्रति लीटर मात्रा से पौधों के जड़ों के पास की मिट्टी को संचित करे. इन उपाय के अलावा खेतों में संतुलित मात्रा में उर्वरक का प्रयोग नीम की खली का प्रयोग तथा खर पतवार का समय पर नियंत्रण करने से खेतों में रोग एवं कीट का प्रकोप कम किया जा सकता है. रोग व्याधि के प्रारंभिक अवस्था में किये गये प्रबंधन कार्य अधिक प्रभावशाली होंगे. प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र सबौर भागलपुर के इंजीनियर पंकज कुमार के सहयोग से संपन्न हुआ. प्रशिक्षण में उपस्थित कीट विज्ञान विभाग के डॉ श्याम बाबू शाह, पौधा रोग विभाग के डॉ चंद कुशवाहा तथा उद्यान फल विभाग के डॉ शशि प्रकाश जिला उद्यान पदाधिकारी उपनिदेशक पौधा संरक्षण तथा सहायक निदेशक पौधा संरक्षण भी सम्मिलित थे.
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