पटना: बिहार में आरंभ से ही भाजपा अपना पांव जमाने की कोशिश करती रही, लेकिन आजादी के बाद पहले के दो चुनावों में उसे सफलता नहीं मिली. जनसंघ के नाम से उन दिनों चुनाव लड़ने वाली भाजपा को पहली सफलता 1962 के विधानसभा चुनाव में मिली , जब उसके एक साथ तीन नेता चुनाव जीत गये.
नालंदा के हिलसा, सीवान और नवादा की सीट पर जनसंघ की जीत
पहली बार नालंदा के हिलसा, सीवान और नवादा की सीट पर जनसंघ की जीत हुई. जनसंघ ने यह सीटें कांग्रेस से छीनी थी. तीनों सीटों पर कांग्रेस का दबदबा था. तीनों सीट पर दूसरे नंबर पर कांग्रेस ही रही. हिलसा में जगदीश प्रसाद ने कांग्रेस के लाल सिंह त्यागी को पराजित किया. सीवान में जनार्दन तिवारी ने कांग्रेस के शंकर सिंह त्यागी को पराजित किया. जबकि, नवादा में गौरीशंकर केसरी ने कांग्रेसी उम्मीदवार सलाउद्दीन खान को पराजित किया. नवादा में जनसंघ को यह जीत मामूली मतों से हुई थी. करीब पांच सौ मतों से कांग्रेस पराजित हो गयी.
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1957 के विधानसभा चुनाव में 30 उम्मीदवार उतारे
साठ के दशक में समाजवादियों की मतदाताओं के बीच अच्छी पैठ रही थी. इसी में जनसंघ भी अपनी चुनावी पहचान बनाने को संघर्ष कर रहा था. जनसंघ ने 1962 के चुनाव में कुल 75 उम्मीदवार उतारे थे. इनमें 61 की जमानत जब्त हो गयी थी. इसके पहले 1957 के विधानसभा चुनाव में आल इंडिया जनसंघ के टिकट पर 30 उम्मीदवार उतारे गये थे, जिनमें एक पर भी जीत नहीं हुई और 24 उम्मीदवारों का जमानत जब्त हो गया.
बाद में भाजपा के रूप में बढ़ती गई पार्टी
जबकि, आजादी के बाद हुए 1951 के पहले चुनाव में जनसंघ के 47 उम्मीदवार उतारे गये, जीत एक पर भी नहीं हुई और 44 प्रत्याशियों का जमानत जब्त हो गया. लेकिन, 1962 में मिली तीन सीटों पर जीत का जो सिलसिला आरंभ हुआ तो वह बाद के दिनों में भारतीय जनता पार्टी के रूप में बढ़ता गया.
Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya
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