2005 से कितना अलग है 2020 का चुनाव?
इस साल के बिहार चुनाव की बात करने से पहले आपको 2005 के विधानसभा चुनाव को समझना होगा. 2005 में चुनाव भी तीन चरणों में हुए. चुनाव परिणाम निकला और सत्ता की चाबी रामविलास पासवान के हाथों में आई. लोजपा को चुनाव परिणाम में 29 सीटें मिली. रामविलास पासवान खुद को किंगमेकर समझने लगे. जब तक सरकार गठन की कोशिशें रंग लाती बिहार में राष्ट्रपति शासन लग गया. इसके बाद अक्टूबर में हुए चुनाव में लोजपा को सिर्फ 10 सीटें मिली. ‘किंगमेकर’ को वजूद बचाने की जद्दोजहद करनी पड़ी. वक्त गुजरने के साथ लोजपा ने बीजेपी से नजदीकी बढ़ाई और एनडीए में शामिल हो गई.
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कितने असरदार ‘युवा बिहारी चिराग पासवान’
ट्विटर पर चिराग ने अपना नाम ‘युवा बिहारी चिराग पासवान’ रखा है. चिराग पासवान के पास राजनीति में अनुभव के नाम पर कुछ उपलब्धियां हैं. वो बिहार के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे हैं. बिहार की जमुई लोकसभा सीट से सांसद भी हैं. मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में वजूद तलाशने के बीच चिराग ने चुनाव का रूख किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर जमुई लोकसभा सीट से दिल्ली पहुंचे. ग्राउंड रियलिटी यह कि चिराग को पीएम मोदी के चेहरे पर वोट मिले. 2014 में जमुई के कई इलाकों के लोगों से मुलाकात के दौरान चिराग की जगह मोदी-मोदी का नारा गूंजता रहा.
चुनावी गणित और बिहार के सियासी समीकरण
बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग पर संशय के बादल हटने शुरू हुए हैं. अंदाजों के बीच सीट बंटवारें की खबरें तैर रही हैं. इसी बीच चिराग पासवान की पार्टी लोजपा के एनडीए से दूर होने की अटकलें तेज हो गई. सीट शेयरिंग को लेकर जारी गतिरोध के बीच ऐसी खबरें सामने आई कि लोजपा एनडीए में रहना चाहती है. लेकिन, जेडीयू का साथ उसे नहीं चाहिए. शायद एनडीए में जीतनराम मांझी का एंगल लोजपा के लिए परेशानी का सबब बन रहा है. लेकिन, चिराग पासवान में वो करिश्मा नहीं है जो पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार में है. अगर लोक जनशक्ति पार्टी और चिराग पासवान एनडीए से दूर होकर खुद के किंगमेकर होने का सपना देख रहे हैं तो उन्हें 2005 के चुनाव परिणाम को याद रखना होगा.
Posted : Abhishek.