राजदेव पांडेय, पटना : विधानसभा चुनाव में बहुमत पाने और हर जाति में पार्टी की स्वीकार्यता को विस्तार देने के लिए राजद हर जुगत भिड़ाने को तैयार है. इस दिशा में वह सबसे पहले एमवाइ समीकरण को विस्तार कर इस चुनाव में अतिपिछड़ों के साथ-साथ अगड़ों पर भी दांव लगाने जा रहा है.
इस संदर्भ में उसने सवर्णों को दी जा सकने वाली दो दर्जन से अधिक सीटों की पहचान भी की है. पिछले चुनाव में राजद ने एक ब्राह्मण, तीन राजपूत और एक कायस्थ उम्मीदवार को ही चुनावी समर में उतारा था. भूमिहार जाति से एक भी सीट नहीं दी थी. पार्टी ने इस बाबत भूमिहारों की नाराजगी अमरेंद्र धारी सिंह को राज्यसभा में पहुंचा कर दूर करने की कोशिश की है.
प्रदेश के सियासी समीक्षकों के मुताबिक अगड़ों को दी गयी दी गयी सीटों पर चुनाव परिणाम उतने निराशाजनक नहीं थे. यह देखते हुए कि अगड़ों को कुल दी गयी पांच में तीन पर जीत हासिल की थी. इनमें ब्राह्मण एक और दो राजपूत प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. कायस्थ उम्मीदवार ने अपनी सफलता नजदीकी मुकाबले में गंवा दी थी.
इस परिदृश्य में राजद ने इस बार पिछले समय से कई गुना सीट देने की रणनीति बनायी है. सीटों की अंतिम संख्या महागठबंधन के अन्य घटक दलों को सीट देने के बाद घट और बढ़ सकती है. दरअसल राजद के राजनीतिक विश्लेषकों ने माना है कि पिछले चुनावों में अगर कुछ अगड़े प्रत्याशी और उतारे होते, तो चुनावी वोट प्रतिशत में सम्मानजनक सुधार हो सकता था.
महागठबंधन के रूप में चुनाव सफलता हासिल करने के बाद भी राजद का वोट प्रतिशत 20.10 से घटकर 18.40 रह गया था. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक जब से राजद पर एमवाय समीकरण का ठप्पा लगा, तब से उसका वोट प्रतिशत घटा है. खासतौर पर अतिपिछड़ों के दूर जाने और सवर्णों के छिटक जाने से वोट प्रतिशत को प्रभावित किया है. घटते वोट प्रतिशत के आंकड़े इसे बात का गवाह हैं.
posted by ashish jha
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