EX DGP Murder: 9 मई को बगहा आने वाले थे ओमप्रकाश गुप्ता, दोस्त ने बताया- यारों के यार थे पूर्व डीजीपी
EX DGP Murder: पश्चिम चंपारण के बगहा के पिपरासी प्रखंड के परसौना गांव के निवासी और कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश गुप्ता का बेंगलूर में संपति को लेकर पत्नी और परिजनों ने चाकू से गोद कर निर्मम हत्या कर दी. उनके निधन पर दोस्त ने बताया कि वो यारों के यार थे.
By Paritosh Shahi | April 22, 2025 2:43 PM
EX DGP Murder, चंद्रप्रकाश आर्य: पश्चिम चंपारण जिला के बगहा नगर के शास्त्री नगर निवासी व कर्नाटक के पूर्व डीजीपी ओमप्रकाश गुप्ता अगामी 9 मई 2025 को बेंगलुरु से अपने पैतृक गृह आवास बगहा आने की तैयारी में थे क्योंकि पैतृक गांव और बगहा से उनका बड़ा लगाव था. उनके बचपन के मित्र डॉ. सुरेश प्रसाद यादव ने रोते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति बगहा और पिपरासी परसौना क्षेत्र से कर्नाटक में पहुंचकर यह कहता था कि मैं बिहार से आया हूं और मेरा यह कार्य है तो वह उसकी मदद जरुर करते थे. इस घटना के बाद बगहा समेत बिहार को एक बड़ी क्षति हुई है.
क्या बोले यादव
सुरेश प्रसाद यादव ने बताया कि हम दोनों मित्र दियारे के पिपरासी में रहकर एक साथ पढ़ाई की थी और तभी से दोनों के बीच गहरा लगाव था . हमारे चाचा पूर्व धनहा विधायक दिवंगत रामनगीना प्रसाद से शिक्षा की प्रेरणा मिली थी . चाचा BHU बनारस यूनिवर्सिटी से डबल MA की उपाधि हासिल किए थे और ओमप्रकाश के पिता दिवंगत शिवपूजन प्रसाद गुप्ता और मेरे चाचा जिगरी दोस्त थे और एक साथ नौकरी में योगदान किया था . ओमप्रकाश के पिताजी एलआईसी में प्रधान लिपिक थे और मेरे चाचा मुजफ्फरपुर के पारू ब्लॉक में तैनात थे. चाचा नौकरी त्याग कर राजनीति में आ गए और यहां भी उन्होंने हम लोगों की खूब मदद की.
कैसे इंसान थे गुप्ता
डॉ. यादव ने बताया कि एक बार मेरे बेटे का एक्सीडेंट हो गया था, उस समय ओम प्रकाश गुप्ता एडीजी के पद पर थे . उन्होंने तीन दिनों तक अस्पताल में रहकर बेटे की देखभाल में मदद की. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने नेक और शरीफ इंसान थे . उन्होंने बताया कि पिपरासी में दोनों के घर आस-पास ही था बाद में बगहा में गंडक नदी के कटाव के कारण दोनों परिवार विस्थापित हो गए और बगहा के शास्त्री नगर में भी हम दोनों पड़ोसी हैं.
ओम प्रकाश गुप्ता शिक्षा में शुरू से ही अवल रहे और वे प्लस टू की पढ़ाई नेतरहाट से की थी वहां कुल 60 सीटें थीं और उनका नाम पहले ही लिस्ट में आ गया था. छुट्टी के दिनों में जब पैतृक गांव पिपरासी और बगहा आते थे तो घर, समाज और बिहार की बातें करते थे. बिहार के लोगों से उन्हें गहरा लगाव था और वे हर संभव मदद करने को तैयार रहते थे.