14 महीने में 8.97 लाख मरीज इलाज कराने डीएमसीएच पहुंचे

जिलों में मेडिकल सुविधा लगातार विकसित होने के बावजूद डीएमसीएच में मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है.

By RANJEET THAKUR | June 13, 2025 10:54 PM
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दरभंगा. उत्तर बिहार का प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान डीएमसीएच गरीबों के लिये लाइफ लाइन है. आसपास के जिलों में मेडिकल सुविधा लगातार विकसित होने के बावजूद डीएमसीएच में मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है. सीमावर्ती जिलाें के अलावा नेपाल की तराई से भी लोग बेहतर चिकित्सा के मद्देनजर यहां पहुंचते हैं. विभागीय जानकारी के अनुसार एक अप्रैल 2024 से तीन जून 2025 तक अस्पताल के विभिन्न विभागों में कुल 08 लाख 97 हजार 634 लाख मरीजों का इलाज हुआ. मेन ओपीडी में 07 लाख 11 हजार 685 लोगों ने परामर्श के लिये निबंधन कराया. इसी अंतराल में आपातकालीन विभाग में आपात स्थिति में पहुंचे 84 हजार 660 लोगों का इलाज किया गया. मदर एंड चाइल्ड हेल्थ में 33 हजार 935, गायनिक में 27 हजार 944, शिशु रोग विभाग में 22 हजार 977, सुपरस्पेश्लिटी अस्पताल के ओपीडी में 15 हजार 371, एवं कैंसर रोग विभाग में एक हजार से अधिक मरीजों को चिकित्सा सुविधा मिली.

मेन ओपीडी में 39.81 लाख रुपये का कटा पर्ची

विभिन्न विभागों में इलाज से पूर्व रजिस्ट्रेशन काउंटर पर मरीज या परिजनों को पर्ची कटानी पड़ती है. प्रति मरीज पांच रुपया शुल्क लिया जाता है. जानकारी के अनुसार इस समयावधि में अस्पताल को कुल 39 लाख 81 हजार 70 रुपये की प्राप्ति हुई. मेन ओपीडी में 31 लाख 08 हजार 65, इमरजेंसी में 04 लाख 18 हजार 795, एमसीएच में 01 लाख 47 हजार 100, गायनिक में 01 लाख 25 हजार 785, शिशु रोग विभाग में 01 लाख 14 हजार 620, सुपरस्पेशलिटी में 62010 एवं कैंसर रोग विभाग में करीब चार हजार रुपये का आय हुआ.

दरभंगा मेडिकल स्कूल के रूप में 1946 में हुई थी अस्पताल की स्थापना

दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल बिहार का सबसे पुराने और प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थानों में से एक है. इसका इतिहास समृद्ध और क्षेत्रीय स्वास्थ्य सेवा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला रहा है. जानकारी के अनुसार डीएमसीएच की स्थापना 1946 में हुई थी. इसका मुख्य उद्देश्य मिथिला और आसपास के क्षेत्रों में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना था. शुरू में इसे दरभंगा मेडिकल स्कूल के रूप में जाना जाता था. बाद में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के रूप में इसे विकसित किया गया. 1946 में स्थापना के बाद, इसे पटना विश्वविद्यालय से संबद्ध किया गया था. बाद में यह ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के तहत आया. फिर यह आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय, पटना से जुड़ा. वर्तमान में यह बिहार स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना से संबद्ध है.

147 पीजी सीटों पर होती पढ़ाई

-अजय कुमार मिश्रा,

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