Darbhanga News: दरभंगा. जन संस्कृति मंच की ओर से बुधवार को कबीरचक में कबीर और नागार्जुन की जयंती डॉ रामबाबू आर्य की अध्यक्षता में मनायी गयी. शुरुआत कबीर और नागार्जुन की तस्वीरों पर माल्यार्पण, कबीर भजन व जनवादी गीतों से हुआ. “फासीवादी बर्बरता के दौर में कबीर-नागार्जुन की जलती मशाल ” विषय पर हुई संगोष्ठी में डॉ सुरेन्द्र प्रसाद सुमन ने कहा कि आज के समय में कबीर और नागार्जुन पर कबीर और नागार्जुन की तरह बेबाकी से कुछ भी कहना जोखिम भरा है. आज यदि कबीर तथा नागार्जुन होते तो या तो जेल में होते अथवा गोलियों से भून दिये जाते. कहा कि जब कभी भी पितृसत्तात्म समाज व्यवस्था तथा फासिस्ट सत्ता की संस्कृति से मुठभेड़ होगी, तो दोनों ही हमारे आगे-आगे मशाल लेकर चलते हुए मिलेंगे. डॉ संजय कुमार ने कहा कि जिस प्रकार कबीर ने सधुक्कड़ी भाषा में सामंती समाज व्यवस्था पर तीखा प्रहार किया था, उसी प्रकार नागार्जुन ने दमनकारी- तानाशाही शासन व्यवस्था को आड़े हाथों लिया था. डॉ कल्याण भारती ने कहा कि कबीर और नागार्जुन सिर्फ कवि ही नहीं थे, बल्कि बड़े सामाजिक -राजनीतिक जनयोद्धा थे. दिनेश साफी ने कहा कि कबीर को भक्तिकाल का संत कवि कहकर सीमित कर दिया गया. डॉ मिथिलेश कुमार यादव, डॉ रामबाबू आर्य, डॉ संतोष कुमार यादव, डॉ शंभू कुमार, डॉ अजय कलाकार, रामनारायण पासवान, डॉ विनय शंकर, डॉ श्रवण कुमार, डॉ दुर्गानन्द यादव, बबिता कुमारी, सुखित लाल यादव, डॉ अनामिका, कल्पना कुमारी और राजकुमार आदि ने भी विचार रखे.
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